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प्रस्तावना
अपहरण सम्बन्धी सूक्ष्म मीमांसा की है। शब्दका अपहरण किस-किस स्थितिमें कैसे किया जाता है, किस प्रकारका शब्दहरण क्षम्य और उचित है, कौन सा अक्षम्य और अनुचित है, आदि बातोंपर विचार किया गया है। शब्दहरणके पाँच भेद हैं।--- १. पदहरण २. पादहरण ३. अर्धहरण ४. वृत्तहरण और ५. प्रबन्धहरण। इसी अध्यायमें चार प्रकारके कवि बतलाये हैं-१. उत्पादक कवि २. परिवर्तक कवि ३. आच्छादक कवि और ४. संवर्गक कवि।।
द्वादश अध्यायमें अर्थ-हरण सम्बन्धी मीमांसा है। इस अध्यायमें अर्थके तीन भेद बतलाये हैं--१. अन्ययोनि, २. निह्नतयोनि और ३. अयोनि ।
अन्ययोनि अर्थके दो भेद हैं-प्रतिबिम्बकल्प और आलेख्यप्रख्य । निह्नतयोनि अर्थ भी दो प्रकारका है-तुल्यदेहि तुल्य और परपुरप्रवेशसदृश । इन चार प्रकारके अर्थोंका निबन्धन करनेवाले कवि भी चार प्रकारके होते हैं-१. भ्रामक २. चुम्बक ३. कर्षक और ४. द्रावक । पाँचवाँ अयोनि या मौलिक अर्थरचना करनेवाला कवि चिन्तामणि है । चिन्तामणि कवि भी तीन प्रकारका होता है-लौकिक, अलौकिक और मिश्र । त्रयोदश अध्यायमें आलेख्य, प्रख्य, तुल्य, देहितुल्य और परपुरप्रवेश-सदृश अर्थापहरणोंका भेद-प्रभेद सहित निरूपण किया है। अर्थहरण के बत्तीस भेद बतलाये गये हैं। इनके त्याग और ग्रहण का भली-भाँति ज्ञान होना ही कवित्व है। चतुर्दश, पंचदश और षोडश अध्यायोंमें कविसमयका वर्णन आया है। कविसमय, कवियोंका परम्परागत साम्प्रदायिक नियम है। राजशेखरने प्राचीन और अर्वाचीन विद्वानोंके नियमोंका निर्देश किया है। कविसमय तीन प्रकारके बतलाये गये हैं-(१) स्वर्गीय (२) भौम और (३) पातालीय। इनमें भौम या पार्थिव कविसमय चार प्रकारका है(१) जातिरूप (२) गुणरूप (३) क्रियारूप और (४) द्रव्यरूप । इन चारोंमें प्रत्येकके तीन-तीन भेद हैं-(१) असत् (२) सत् और (३) नियम । इस प्रकार चतुर्दश और पंचदश अध्यायोंमें भौम कवि-समयकी विस्तृत विवेचना और षोडश अध्यायमें स्वर्गीय एवं पातालीय कविसमयोंका वर्णन किया है। सप्तदश और अष्टादश अध्यायोंमें क्रमशः देश और कालके परिज्ञानका कथन आया है।
काव्यमीमांसाका यह उपलब्ध अंश 'कवि रहस्य'के नामसे प्रसिद्ध है। 'काव्यमीमांसा'की पूर्वोक्त विषय सामग्रीका अध्ययन करनेसे यह स्पष्ट ज्ञात होता है कि 'काव्यमीमांसा' और 'अलंकारचिन्तामणि' इन दोनों ग्रन्थोंकी विषय-वस्तु भिन्न है। काव्यमीमांसामें रस, गुण, दोष और अलंकारोंके प्रतिपादनको प्रमुखता नहीं दी गयी है, जब कि 'अलंकारचिन्तामणि' में उक्त विषयोंकी मीमांसाको मुख्यता दी गयी है। काव्यमीमांसामें शास्त्रसंग्रह, शास्त्रनिर्देश आदि आधारभूत तथा गम्भीर विषयोंका प्रधान रूपसे वर्णन किया गया है। प्रसंगवश रस, अलंकार आदिका विश्लेषण होता गया है, पर प्रमुखता इन विषयोंकी नहीं है ।
काव्यमीमांसामे प्रतिभा और व्युत्पत्ति दोनों संयुक्त रूपसे काव्यरचनामें
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