________________
प्रस्तावना
चित्रालंकारके व्यस्त, समस्त, द्विव्यस्त, द्विसमस्त, व्यस्त-समस्त, द्विःव्यस्त-समस्त; द्विसमस्तक-सुव्यस्तक, एकालाप, प्रभिन्नक, भेद्यभेदक, प्रश्नोत्तर, भग्नोत्तर आदि बयालीस भेद बताये हैं और इन सभीकी परिभाषाएँ अंकित की है। चित्रालंकारके अन्तर्गत ही चक्रबन्ध, पद्मबन्ध, सर्वतोभद्र, शृंखलाबन्ध, नागपाश, मुरजबन्ध, अनन्तरपादमुरजबन्ध, इष्टपादमुरजबन्ध, गोमूत्रिकाबन्ध, अर्धभ्रम आदि बन्धोंका स्वरूप विवेचन आया है । प्रहेलिका, अर्थप्रहेलिका, शब्दप्रहेलिका, स्पष्टान्धक प्रहेलिका, अन्तरालापक, बहिरालापक तथा विविध प्रकारके प्रश्नोत्तरोंका समावेश भी चित्रालंकारमें किया है। काव्यप्रकाशमें इस प्रकारके विवेचनका अभाव है।
अलंकारचिन्तामणि के तृतीय परिच्छेदमें वक्रोक्ति, अनुप्रास और यमक इन तीनों अलंकारोंकी भेद-प्रभेद सहित मीमांसा की गयी है। यह मीमांसा बहुत कुछ अंशोमें काव्यप्रकाशके तुल्य है ।
__ अलंकारचिन्तामणि के प्रथम परिच्छेदमें कविशिक्षाका जैसा विस्तृत वर्णन आया है वैसा काव्यप्रकाशमें नहीं है । महाकाव्यके वर्ण्य-विषयोंका ऐसा स्पष्ट प्रतिपादन अन्यत्र उपलब्ध नहीं होता है।
काव्यप्रकाशके दशम उल्लासमें अर्थालंकारोंका निरूपण आया है। मम्मटने अपने पूर्ववर्ती आचार्योंकी अपेक्षा अर्थालंकारोंकी संख्याकी वृद्धि की है और इकसठ अर्थालंकारोंके स्वरूप निरूपित हैं। अलंकारचिन्तामणि में बहत्तर अर्थालंकारोंके स्वरूप
और उदाहरण आये हैं। इस ग्रन्थमें अलंकारोंके वर्गीकरण का आधार भी प्रतिपादित किया गया है जब कि काव्यप्रकाशमें आधारका उल्लेख नहीं है। रस-प्रकरण दोनों ग्रन्थोंका प्रायः समान है। स्थायी भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भावोंका निरूपण भी समान रूप में प्राप्त है । अलंकारचिन्तामणि में रसाभास, भावाभास, भावशान्ति, भावोदय, भावसन्धि और भावशबलताका जहाँ अभाव है वहाँ काव्यप्रकाशमें इनका विवेचन उपलब्ध होता है ।
वाग्भटालंकार और अलंकारचिन्तामणि
वाग्भट प्रथमने वाग्भटालंकारकी रचना की है। इस ग्रन्थमें पाँच परिच्छेद हैं । प्रथम तीन परिच्छेदोंमें काव्यलक्षण, काव्यहेतु, कविशिक्षा, कविसमय, काव्योपयोगी संस्कृतादि चार भाषाएँ, काव्यका गद्य-पद्यमय विभाग, पद-वाक्य-दोष-गुणोंके वर्णन करनेके पश्चात् चतुर्थ परिच्छेदमें अलंकारोंका विवेचन किया गया है। पंचम परिच्छेदमें नवरस, नायक-नायकादि भेद निरूपित हैं।
वाग्भटालंकारकी अलंकारचिन्तामणिके साथ तुलना करनेपर ज्ञात होता है कि वाग्भटालंकारकी काव्यपरिभाषा अलंकारचिन्तामणिकी काव्यपरिभाषाके समकक्ष है। वाग्भटने लिखा है[९]
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org