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living being with sensory knowledge knows and sees rudimentarily or superficially all areas. In the same way he also knows and sees all time and all states superficially.
विवेचन : ऊपर द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा आभिनिबोधिक ज्ञान का विषय बताया गया है। द्रव्य का अर्थ है-धर्मास्तिकाय आदि द्रव्य। क्षेत्र का अर्थ है-द्रव्यों का आधारभूत आकाश। काल का अर्थ है-द्रव्यों के 5 पर्यायों की स्थिति। और भाव का अर्थ है-औदयिक आदि भाव अथवा द्रव्य के पर्याय। द्रव्य की अपेक्षा आभिनिबोधिक ज्ञानी धर्मास्तिकाय आदि सर्व द्रव्यों को आदेश से-ओघरूप (सामान्य रूप) से जानता है, उसमें रही हई सभी विशेषताओं से (विशेष रूप से) नहीं जानता। अथवा आदेश का अर्थ है-श्रुतज्ञानजनित संस्कार। इनके द्वारा अवाय और धारणा की अपेक्षा जानता है, क्योंकि ये दोनों ज्ञानरूप हैं तथा अवग्रह और ईहा दर्शन रूप हैं। इसलिए अवग्रह और ईहा से देखता है। श्रुतज्ञानजन्य संस्कार से लोकालोकरूप सर्वक्षेत्र को देखता है। काल से सर्वकाल को और भाव से औदयिक आदि पाँच भावों को जानता है।
Elaboration-The scope of sensory knowledge covers four fields. Substance (dravya) includes everything like Dharmastikaaya (entity of motion). Area (kshetra) means space, on which everything rests. Time (kaal) defines modes and activities of things. State (bhaava) means mode or state of existence of things, such as audayik or state of fruition. An individual endowed with abhinibodhik jnana (sensory knowledge) knows si all about substances rudimentarily, he does not know all attributes in 4 their every detail. Here the term aadesh means instinctive or inherited traits as mentioned in scriptures or recorded information. The process of seeing involves acquiring cursory knowledge through sense organs (avagraha) and match it with the recorded information (iha). The process of knowing involves-to validate and conclusively classify (avaya), and finally acquire or absorb into memory (dhaarana). With the same process he knows and sees all space, all time, and all states rudimentarily.
१२९. [प्र. ] सुयनाणस्स णं भंते ! केवइए विसए पण्णत्ते ?
[उ. ] गोयमा ! से समासओ चउब्विहे पण्णत्ते, तं जहा-दव्वओ खेत्तओ कालओ भावओ। दव्वओके णं सुयनाणी उवयुत्ते सव्वदव्वाइं जाणइ-पासइ। एवं खेत्तओ वि, कालओ वि। भावओ णं सुयनाणी उवजुत्ते सव्वभावे जाणइ पासइ।
१२९. [प्र. ] भगवन् ! श्रुतज्ञान का विषय कितना है ? [उ. ] गौतम ! श्रुतज्ञान का विषय संक्षेप में चार प्रकार का है। यथा-द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से। द्रव्य से, उपयोगयुक्त (उपयुक्त) श्रुतज्ञानी सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है। क्षेत्र से, के
जागा
अष्टम शतक : द्वितीय उद्देशक
(75)
Eighth Shatak : Second Lesson
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