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卐 ७८. तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि को आगे करके उसके माता-पिता, जहाँ श्रमण भगवान ! + महावीर विराजमान थे, वहाँ उपस्थित हुए और श्रमण भगवान महावीर को दाहिनी ओर से तीन बार ॐ प्रदक्षिणा की, यावत् वन्दना-नमस्कार करके इस प्रकार निवेदन किया-भगवन् ! यह क्षत्रियकुमार । 卐 जमालि, हमारा इकलौता, इष्ट, कान्त और प्रिय पत्र है। यावत-इसका नाम सुनना भी दुर्लभ है तो दर्शन :
दुर्लभ हो, इसमें कहना ही क्या ! जैसे कोई कमल (उत्पल), पद्म या यावत् सहस्रदलकमल कीचड़ में : ॐ उत्पन्न होने और जल में संवर्द्धित (बड़ा) होने पर भी पंकरज से लिप्त नहीं होता, न जल-कण । 卐 (जलरज) से लिप्त होता है। इसी प्रकार क्षत्रियकुमार जमालि भी काम में उत्पन्न हुआ, भोगों में संवर्द्धित :
(बड़ा) हुआ; किन्तु काम में लेश मात्र भी लिप्त (आसक्त) नहीं हुआ और न ही भोग के अंश मात्र से ॐ लिप्त (आसक्त) हुआ और न यह मित्र, ज्ञाति, निज-सम्बन्धी, स्वजन-सम्बन्धी और परिजनों में लिप्त ! + हुआ है। हे देवानुप्रिय ! यह संसार-(जन्म-मरणरूप) भय से उद्विग्न हो गया है, यह जन्म-मरण (के
चक्र) के भय से भयभीत हो चुका है। अतः आप देवानुप्रिय के पास मुण्डित होकर, अगारवास छोड़कर ऊ अनगारधर्म में प्रव्रजित हो रहा है। इसलिए हम आप देवानुप्रिय को यह शिष्य-भिक्षा देते हैं। आप ! देवानुप्रिय इस शिष्यरूप भिक्षा को स्वीकार करें।
78. Now, keeping him in the lead Kshatriya youth Jamali's parents ! approached Shraman Bhagavan Mahavir and after going around him! three times from the right ... and so on up to... paying due obeisance submitted thus - “Bhante! This is Kshatriya youth Jamali, our only and cherished, lovely, adored, charming, and beloved son. ... and so on up to... It is difficult to hear about a son like him, what to say of seeing one that u
is so rare. A lotus (Utpal, Padma etc.) sprouts in swamp and grows in 41 water but still remains free from stains of mud or wetness of water. In 9
the same way Kshatriya youth Jamali was born out of lust and grew amidst earthly pleasures but has still remained free from the slime of
lust and wetness of indulgence in pleasures. He is equally detached from ___his relatives, kin, friends and servants. Beloved of gods! He has become .
apprehensive of the cycles of rebirth and the sequence of birth-agingdeath. As such, renouncing his home and shaving his head he wants to become Anagaar (homeless ascetic) from Aagaar (house-holder) under ! your auspices. That is why we want to effect a disciple-donation and beseech you to accept him as a disciple.”
७९. तए णं समणे भगवं महावीरे तं जमालिं खत्तियकुमारं एवं वयासी-अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध। ____७९. इस पर श्रमण भगवान महावीर ने उस क्षत्रियकुमार जमालि से इस प्रकार कहा- 'हे ॐ देवानुप्रिय ! जिस प्रकार तुम्हें सुख हो, वैसा करो, किन्तु (धर्मकार्य में) विलम्ब मत करो।"
'79. At this Shraman Bhagavan Mahavir said to Kshatriya youth Jamali - "O Beloved of gods! Do as you please and do not procrastinate."
नागारागारागानागगगगगगगगगगना1111112113
भगवती सूत्र (३)
(482)
Bhagavati Sutra (3)
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