Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

Previous | Next

Page 580
________________ 卐5555555555555555555555555555555555555555555555553 beings reincarnate as divine beings among the Kilvishik devs (servant gods) in any of the three following classes - (1) With a life-span of three 卐 Palyopam (a metaphoric unit of time). (2) with a life-span of three Sagaropam (a metaphoric unit of time). (3) with a life-span of thirteen Sagaropam (a metaphoric unit of time). १०९. [प्र. ] देवकिबिसिया णं भंते ! ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छंति ? कहिं उववज्जति ? __[उ. ] गोयमा ! जाव चत्तारि पंच नेरइय-तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियट्टित्ता तओ पच्छा सिझंति बुझंति जाव अंतं करेंति। अत्थेगइया अणादीयं अणवदग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियटति। १०९. [प्र. ] भगवन् ! किल्विषिक देव उन देवलोकों से आयु का क्षय होने पर, भव क्षय होने पर और स्थिति का क्षय होने के बाद च्यवकर कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? __ [उ. ] गौतम ! कुछ किल्विषिक देव (बीच में मनुष्य व तिर्यंच का भव करके) नैरयिक, तिर्यंच, मनुष्य और देव के चार-पाँच भव करके और इतना संसार-परिभ्रमण करके तत्पश्चात् सिद्ध बुद्धॐ मुक्त होते हैं, यावत् सर्व-दुःखों का अन्त करते हैं और कितने ही किल्विषिक देव अनादि, अनन्त और । दीर्घ मार्ग वाले चार गतिरूप संसार-कान्तार (संसाररूपी अटवी) में परिभ्रमण करते हैं। 109. [Q.] Bhante! When these Kilvishik devs exhaust their life-span, ! existence and stay in their specific divine realm and descend, where do they go and where are they born? ___[A.] Gautam! Some of them pass through four or five births as ! infernal, animal, human and divine beings and then get perfected (Siddha), enlightened (buddha), liberated (mukta) ... and so on up to... end all miseries. Some others continue to drift back and forth into one or the other of the four forms of existence on the long path, which is without a beginning or an end, in this vast wilderness of mundane life. जमालि की उत्पत्ति का कारण REASON FOR JAMALI'S REINCARNATION ११०. [प्र. ] जमाली णं भंते ! अणगारे अरसाहारे विरसाहारे अंताहारे पंताहारे लूहाहारे तुच्छाहारे अरसजीवी विरसजीवी जाव तुच्छजीवी उवसंतजीवी पसंतजीवी विवित्तजीवी ? [उ. ] हंता, गोयमा ! जमाली णं अणगारे अरसाहारे विरसाहारे जाव विवित्तजीवी। ११० [प्र. ] भगवन् ! क्या जमालि अनगार अरसाहारी, विरसाहारी, अन्ताहारी, प्रान्ताहारी, ॐ रूक्षाहारी, तुच्छाहारी, अरसजीवी, विरसजीवी यावत् तुच्छजीवी, उपशान्तजीवी, प्रशान्तजीवी और + विविक्तजीवी था? [उ. ] हाँ, गौतम ! जमालि अनगार अरसाहारी, यावत् विविक्तजीवी था। गगगगगगग ) )) )) भगवती सूत्र (३) (500) Bhagavati Sutra (3) ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664