Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 584
________________ 卐 B ********************************** चउत्तीसमो उद्देसो : 'पुरिसे' नवम शतक : चौंतीसवाँ उद्देशक : पुरुष (पुरुष और नोपुरुष का घातक) NAVAM SHATAK (Chapter Ninth) : THIRTY FOURTH LESSON : PURUSH (MAN) उपोद्घात INTRODUCTION १. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे जाव एवं क्यासी १. उस काल और उस समय में राजगृह नगर था । वहाँ भगवान गौतम ने यावत् भगवान से इस प्रकार पूछा 1. During that period of time there was a city called Rajagriha. so on up to... Bhagavan Gautam asked Bhagavan Mahavir— पुरुष के द्वारा अश्वादिघात सम्बन्धी प्रश्नोत्तर QUESTIONS ABOUT KILLING HORSE AND OTHERS २. [ प्र. १ ] पुरिसे णं भंते ! पुरिसं हणमाणे किं पुरिसं हणति, नोपुरिसं हणति ? [ उ. ] गोयमा ! पुरिसं पि हणति, नोपुरिसे वि हणति । २. [ प्र. १ ] भगवन् ! कोई पुरुष, पुरुष की घात करता हुआ क्या पुरुष की ही घात करता अथवा नोपुरुष (पुरुष के सिवाय अन्य जीवों) की भी घात करता है ? [ उ. ] गौतम ! वह (पुरुष) पुरुष की भी घात करता है और नोपुरुष की भी घात करता है । 2. [Q. 1] Bhante ! While a person is killing a man, does he kill just a man (purush) or a non-man (nopurush; living beings other than man) also? [Ans.] Gautam ! He kills man (purush) as well as non-man (nopurush; ५ living beings other than man). ५ २. [ प्र. २ ] से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ 'पुरिसं पि हणइ, नोपुरिसे वि हणइ' ? [ उ. ] गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ - ' एवं खलु अहं एगं पुरिसं हणामि' से णं एगं पुरिसं हणमाणे अगे जीवे ह । से णट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ 'पुरिसं पि हणइ नोपुरिसे वि हणति' । and २. [ प्र. २ ] भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि वह पुरुष की भी घात करता है, नोपुरुष की भी घात करता है ? [ उ. ] गौतम ! (घात करने के लिए उद्यत) उस पुरुष के मन में ऐसा विचार होता है कि मैं एक ही पुरुष को मारता हूँ; किन्तु वह एक पुरुष को मारता हुआ अन्य अनेक जीवों को भी मारता है। इसी दृष्टि से, हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि वह घातक, पुरुष को भी मारता है और नोपुरुष को भी मारता 1 भगवती सूत्र ( ३ ) (504) Jain Education International For Private & Personal Use Only गगगगग hhhh Bhagavati Sutra (3) 255 5555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 555 5555952 www.jainelibrary.org

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