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६. [प्र. २ ] से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ जाव नोइसि पि हणइ ? 3 [उ. ] गोयमा ! तस्स णं एवं भवइ-एवं खलु अहं एगं इसिं हणामि, से णं एगं इसिं हणमाणे अणंते म जीवे हणइ से तेणटेणं निक्खेवओ। ॐ ६. [प्र. २ ] भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है कि ऋषि को मारने वाला पुरुष ऋषि को भी + मारता है और नोऋषि को भी?
[उ. ] गौतम ! ऋषि को मारने वाले उस पुरुष के मन में ऐसा विचार होता है कि मैं एक ऋषि को 卐 मारता हूँ; किन्तु वह एक ऋषि को मारता हुआ अनन्त जीवों को मारता है। इस कारण, हे गौतम ! : पूर्वोक्त रूप से कहा गया है।
6. [Q.2] Bhante ! Why do you say that he kills sage (rishi) as well as non-sage (norishi; living beings other than sage)? ।
[Ans.] Gautam ! (When ready to kill) that person thinks that he is killing just one sage. But, in fact, while killing just one sage he kills infinite other living beings as well. That is why, Gautam ! It is as stated
above. ॐ विवेचन : प्राणिघात के सम्बन्ध में सापेक्ष सिद्धान्त-(१) कोई व्यक्ति किसी पुरुष को मारता है तो कभी केवल 卐
उसी पुरुष का वध करता है, कभी उसके साथ एक जीव का और कभी अन्य अनेक जीवों का वध भी करता है, यों तीन भंग होते हैं, क्योंकि कभी उस पुरुष के आश्रित जूं, लीख, कृमि-कीड़े आदि या रक्त, मवाद आदि
के आश्रित अनेक जीवों का वध कर डालता है। शरीर को सिकोड़ने-पसारने आदि में भी अनेक जीवों का वध 卐 सम्भव है।
(२) ऋषि का घात करता हुआ व्यक्ति अनन्त जीवों का घात करता है, यह एक ही भंग है। इसका कारण यह है कि ऋषि-अवस्था में वह सर्वविरत होने से अनन्त जीवों का रक्षक होता है, किन्तु मर जाने पर वह 卐 अविरत होकर अनन्त जीवों का घातक बन जाता है। अथवा जीवित रहता हुआ ऋषि अनेक प्राणियों को
प्रतिबोध देता है, वे प्रतिबोध-प्राप्त प्राणी क्रमशः मोक्ष पाते हैं। मुक्त जीव अनन्त संसारी प्राणियों के अघातक होते हैं। अतः उन अनन्त जीवों की रक्षा में जावित ऋषि कारण है। इसलिए कहा गया है कि ऋषिघातक व्यक्ति अन्य अनन्त जीवों की घात करता है। (वृत्ति ४९१)
Elaboration-Wider ramification of killing-(1) When a person kills a man there are three probabilities. In some case he kills just that particular man, in some case he kills one other living being and in some case he kills many other living beings. This is because sometimes he kills many parasites like louse, nit, worms or some microorganism in blood, pus etc. There are chances of killing many living beings in contraction and spreading of body and limbs as well.
(2) In case of killing a sage there is just one other option, that of killing infinite living beings. The reason for this is that a sage or ascetic
नवम शतक : चौतीसवाँ उद्देशक
(507)
Ninth Shatak : Thirty Fourth Lesson
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