Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 591
________________ 35555555555)))))))))))))))))))))) ))))))))))) ))) १२. [प्र. ] आउक्काइए णं भंते ! पुढविक्काइयं आणमति वा पाणमति वा० ? + [उ. ] एवं चेव। १२. [प्र. ] भगवन् ! अप्कायिक जीव, पृथ्वीकायिक जीवों को आभ्यन्तर एवं बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करते और छोड़ते हैं ? [उ. ] (गौतम !) पूर्वोक्त रूप से ही जानना चाहिए। 12. Bhante ! Do water-bodied beings (apkayik jiva) inhale and exhale ... and so on up to... earth-bodied beings (prithvikayik jiva) during respiration ? ___ [Ans.] Gautam ! It is same as aforesaid. १३. [प्र. ] आउक्काइए णं भंते ! आउक्काइयं चेव आणमति वा० ? [उ. ] एवं चेव। १४. एवं तेउ-वाउ-वणस्सइकाइयं। १३. [प्र. ] भगवन् ! अप्कायिक जीव, अप्कायिक जीव को आभ्यन्तर एवं बाह्य श्वासोच्छ्वास के फ़ रूप में ग्रहण करता और छोड़ता है ? [ उ. ] (हाँ, गौतम !) पूर्वोक्त रूप से जानना चाहिए। १४. इसी प्रकार तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक के विषय में भी जानना चाहिए। 13. Bhante ! Do water-bodied beings (apkayik jiva) inhale and exhale and so on up to... water-bodied beings (apkayik jiva) during respiration? [Ans.] Gautam ! It is same as aforesaid. 14. The same is true for fire-bodied (tejaskayik), air-bodied (vayukayik) and plant-bodied (vanaspatikayik) beings. १५. [प्र. ] तेउक्काइए णं भंते ! पुढविक्काइयं आणमति वा ? एवं जाव वणस्सइकाइए णं भंते ! वणस्सइकाइयं चेव आणमति वा० ? [उ. ] तहेव। १५. [प्र. ] भगवन् ! तेजस्कायिक जीव पृथ्वीकायिक जीवों को आभ्यन्तर एवं बाह्य : ॐ श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता और छोड़ता है ? इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक जीव ॥ वनस्पतिकायिक जीव को आभ्यन्तर एवं बाह्य श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता और छोड़ता है ? [उ. ] (गौतम !) यह सब पूर्वोक्त रूप से जानना चाहिए। ) )))))))))) नवम शतक : चौतीसवाँ उद्देशक (511) Ninth Shatak : Thirty Fourth Lesson B y ) ) ) )) ) )) ) ) ) ) )) ) ) ) ) ) )) ) ) ) ) ) ) ) )) ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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