Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 581
________________ 55555555555555555555)))))))))भाका $ 110. (Q.) Bhante! Did ascetic Jamali consume food that was tasteless 15 4 (aras), foul (viras), leftover (ant), not enough (praant), dry (ruksh), and 卐 fi poor (tuchchha)? Did he subsist on tasteless (aras), foul (viras) ... and so $5 fi on up to... poor (tuchchha)? Did he lead a tranquil (upashaant), peaceful (prashaant), and solitary (vivikta) life? (A.) Yes, Gautam! Jamali ascetic consume food that was tasteless fi (aras)... and so on up to... he lead a solitary (vivikta) life. १११. [प्र. ] जति णं भंते ! जमाली अणगारे अरसाहारे विरसाहारे जाव विवित्तजीवी कम्हा णं के भंते ! जमाली अणगारे कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमद्वितीएसु देवकिब्बिसिएसु देवेसु +देवकिदिबसियत्ताए उववन्ने ? म [उ. ] गोयमा ! जमाली णं अणगारे आयरियपडिणीए उवज्झायपडिणीए आयरिय-उवज्झायाणं म अयसकारए जाव बुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे बहूई वासाई सामण्णपरियागं पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेइ, तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता तस्स ठाणस्स + अणालोइयपडिक्कंते कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे जाव उववन्ने। १११. [प्र. ] भगवन् ! यदि जमालि अनगार अरसाहारी, यावत् विविक्तजीवी था, तो काल के समय काल करके वह लान्तककल्प में तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देवों में किल्विषिक देव के रूप में क्यों उत्पन्न हुआ? म [उ. ] गौतम ! जमालि अनगार आचार्य का प्रत्यनीक (द्वेषी), उपाध्याय का प्रत्यनीक तथा आचार्य, और उपाध्याय का अपयश करने वाला और उनका अवर्णवाद करने वाला था, यावत् वह 卐 मिथ्याभिनिवेश द्वारा अपने आपको, दूसरों को और उभय को भ्रान्ति में डालने वाला और दुर्विदग्ध (मिथ्याज्ञान के अहंकार वाला) बनाने वाला था, यावत् बहुत वर्षों तक श्रमण-पर्याय का पालन कर, ॐ अर्द्ध-मासिक संलेखना से शरीर को कृश करके तथा तीस भक्त का अनशन द्वारा छेदन (छोड़) कर उस 卐 अकृत्यस्थान (पाप) की आलोचना और प्रतिक्रमण किये बिना ही, उसने काल के समय काल किया, जिससे वह लान्तक देवलोक में तेरह सागरोपम की स्थिति वाले किल्विषिक देवों में किल्विषिक देवरूप 卐 में उत्पन्न हुआ। 111. [Q.] Bhante! If ascetic Jamali consumed food that was tasteless (aras)... and so on up to... he led a solitary (vivikta) life, then why did he leave his earthly body at the time of death and reincarnated as a divine being among the Kilvishik deus (servant gods) in the Lantak Kalp (a divine dimension) with a life span of thirteen Sagaropam (a metaphoric unit of time)? [A.] Gautam! Ascetic Jamali was hostile (pratyaneek) to the acharya (head of the organization), hostile to the upadhyaya (teacher of the canon), and hostile to the Kula, Gana and Sangh; he spoke ill of the 卐5555555555555555 卐5555555555555555555555 नवम शतक : तेतीसवाँ उद्देशक (501) Ninth Shatak : Thirty Third Lesson 卐 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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