________________
9555555555555555555555555
85555555555555555555555555555555555558
attachment and aversion by means of penance. May you subjugate the 15 enemies in the form of eight types of Karmas with the help of pure 45 ultimate meditation (Shukla Dhyan). O Epitome of patience! May you 451 become ever alert and furl the flag of spiritualism on the universal stage. May you attain the ultimate state of pure knowledge or omniscience that is free of the darkness of ignorance. May you destroy the chain of afflictions and being free of them may you attain the stable and eternal
state of liberation. May your spiritual endeavour be free of obstacles." 5 And they repeatedly hailed for the auspicious victory.
७७. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे नयणमालासहस्सेहिं पिच्छिज्जमाणे पिच्छिज्जमाणे एवं जहा म उववाइए कणिओ जाव णिग्गच्छति, निग्गच्छित्ता जेणेव माहणकुंडग्गामे नगरे जेणेव बहसालए चे.
उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता छत्तादीए तित्थगरातिसए पासइ, पासित्ता पुरिससहस्सवाहिणिं सीयं टवेइ,
ठवित्ता पुरिससहस्सवाहिणीओ सीयाओ पच्चोरुहइ। + ७७. औपपातिकसूत्र में वर्णित कूणिक के वर्णनानुसार क्षत्रियकुमार जमालि (दीक्षार्थी के रूप में)
हजारों (व्यक्तियों) की नयनावलियों द्वारा देखा जाता हुआ यावत् (क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के बीचोंबीच फ़ होकर) निकला। फिर ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर के बाहर बहुशालक नामक उद्यान के निकट आया और
ज्यों ही उसने तीर्थंकर भगवान के छत्र आदि अतिशयों को देखा, त्यों ही हजार पुरुषों द्वारा उठाई जाने ॐ वाली उस शिविका को ठहराया और स्वयं उस सहस्रपुरुषवाहिनी शिविका से नीचे उतरा।
77. Like King Kunik, as detailed in Aupapatik Sutra, Kshatriya youth Jamali (aspiring initiation) witnessed by thousands of assembled people ... and so on up to... passed through Kshatriya Kundagram city
and approached Bahushalak garden outside Brahman Kundagram. As 1 soon as he saw the divine wonders around the Tirthankar, including the
divine canopies, he stopped the thousand-bearer palanquin and got down
from it. म प्रव्रज्या ग्रहण INITIATION
७८. तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मा-पियरो पुरओ काउं जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव ॐ उवागच्छइ; तेणेव उवागच्छित्ता, समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता एवं वयासी-एवं खलु भंते
! जमाली खत्तियकुमारे अम्हं एगे पुत्ते इठे कंते जाव किमंग पुण पासणयाए ? से जहानामए उप्पले इ वा ,
पउमे इ वा जाव सहस्सपत्ते इ वा पंके जाए जले संवुड्ढे णोपलिप्पइ पंकरएणं णोवलिप्पइ जलरएणं है म एवामेव जमाली वि खत्तियकुमारे कामेहिं जाए भोगेहिं संवुड्ढे णोवलिप्पइ कामरएणं णोवलिप्पइ भोगरएणं
णोवलिप्पइ मित्त-णाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं, एस णं देवाणुप्पिया ! संसारभउबिग्गे, भीए 卐 जम्मण-मरणेणं देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणागारियं पव्वयइ, तं एवं णं
देवाणुप्पियाणं अम्हे सीसभिक्खं दलयामो, पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया सीसभिक्खं।
555555555555555555555555555555555555555555558
नवम शतक : तेतीसवाँ उद्देशक
(481)
Ninth Shatak : Thirty Third Lesson
B5555555555555555555555555555555555553
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org