Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 571
________________ )) ))) ) ) ) ) )) ) 卐))))))) 9 Bhagavan Mahavir was stationed. They went clockwise around Bhagavan three times, paid homage and obeisance, and joined the group under his auspices. विवेचन : 'चलमान चलित' : भगवान का सिद्धान्त है-इसका सयुक्तिक विवेचन भगवतीसूत्र के प्रथम शतक : के प्रथम उद्देशक में किया गया है। जमालि अनगार ने इस सिद्धान्त के विरुद्ध एकान्तदृष्टि से प्ररूपणा की, म इसलिए यह सिद्धान्त अयथार्थ है। इसका विवेचन विशेषावश्यकभाष्य निह्नववाद में है। Elaboration - Moving is moved' - This is Bhagavan Mahavir's theory and its detailed explanation is available in the first lesson of the i first chapter of Bhagavati Sutra. Jamali proposed his own doctrine in defiance of this from his absolutist viewpoint, therefore this doctrine is wrong. This is discussed in more details in Visheshavashyak Bhashya, Nihnavavaad. जमालि द्वारा सर्वज्ञता का मिथ्या दावा FALSE CLAIM OF OMNISCIENCE BY JAMALI ९८. तए णं से जमाली अणगारे अनया कयाइ ताओ रोगायंकाओ विप्पमुक्के हट्टे जाए अरोए बलियसरीरे सावत्थीओ नयरीओ कोट्ठयाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पुब्बाणुपुरि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव चंपा नयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामंते ठिच्चा समणं भगवं महावीरं एवं वयासी-जहा णं देवाणुप्पियाणं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा छउमत्था भवेत्ता छउमत्थावक्कमणेणं ॐ अवक्कंता, णो खलु अहं तहा छउमत्थे भवित्ता छउमत्थावक्कमणेणं अवकंते, अहं णं उप्पन्नणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली भवित्ता केवलिअवक्कमणेणं अवक्कंते। ९८. तदनन्तर किसी समय जमालि अनगार उस व्याधि पीड़ा से मुक्त और स्वस्थ हो गया, तथा नीरोग और बलवान शरीर वाला हुआ; तब श्रावस्ती नगरी के कोष्ठक उद्यान से निकला और अनुक्रम 卐 से विचरण करता हुआ, ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ, जहाँ चम्पा नगरी में पूर्णभद्र चैत्य था, जिसमें + श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, उनके पास आया। वह भगवान महावीर से न तो अत्यन्त दूर है और न अति निकट खड़ा रहकर भगवान से इस प्रकार कहने लगा-जिस प्रकार आप देवानुप्रिय के फ़ बहुत से शिष्य छद्मस्थ रहकर छद्मस्थ अवस्था में ही (गुरुकुल से) निकलकर विचरण करते हैं, उस म प्रकार मैं छद्मरथ रहकर छद्मस्थ अवस्था में निकलकर विचरण नहीं करता; मैं उत्पन्न हुए केवलज्ञानॐ केवलदर्शन को धारण करने वाला अर्हत्, जिन, केवली होकर केवली-(अवस्था में निकलकर केवली-) विहार से विचरण कर रहा हूँ, अर्थात् मैं केवली हो गया हूँ। 98. After scme time ascetic Jamali got cured of his ailment. He regained his health and his body became strong and free of any disease. He now left the Koshthak garden and Shravasti city. Moving from one village to another he came to Champa city. There he went to )) )) )) ) 听听听听听听听听听听听听听听听 2555555555))))) नवम शतक : तेतीसवाँ उद्देशक (491) Ninth Shatak: Thirty Third Lesson 5 ) )))) ))))) )))) ))) ) ))) ) ) ))) ))) ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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