Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 574
________________ they are as competent to answer these questions as I am. Even then they do not use the language you use (claiming yourself to be an omniscient etc.). "Jamali! This universe (Lok) is eternal (from one angle). This is because it is not that it never was, it is not that it never is, and also it is not that it never will be. The universe always existed, does exist and will exist. It is dhruva (constant), niyat (fixed), shashuat (eternal), akshaya (imperishable), avyaya (non-expendable), avasthit (steady), and nitya (perpetual). Also, Jamali! This universe is transient (from another angle). This is because progressive cycle of time (Utsarpini kaal) comes after regressive cycle of time (Avasarpini kaal) and regressive cycle of time comes after progressive cycle of time. “Jamali! Soul (jiva) is eternal (from one angle). This is because it is not that it never was, it is not that it never is, and also it is not that it never will be. ... and so on up to... and nitya (perpetual). Also, Jamali! This soul is transient (from another angle). This is because existing as an infernal being it moves to the animal genus; from animal genus it moves to human genus; and from the human genus it has chances of moving to the divine genus." ॐ मिथ्यात्वग्रस्त जमालि की विराधकता FALSEHOOD INSPIRED DEFIANCE OF JAMALI १०२. तए णं से जमाली अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स एवमाइक्खमाणस्स जाव एवं ॐ परूवेमाणस्स एयमटं णो सद्दहइ णो पत्तियइ णो रोएइ, एयमझें असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे दोच्चं पि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ आयाए अवक्कमइ, दोच्चं पि आयाए अवक्कमित्ता बहूहिं असम्भावुभावणाहिं मिच्छत्ताभिणिवेसेहि य अप्पाणं च परं च तदुभयं च बुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे : बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अद्धमासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसेइ, अत्ताणे झूसेत्ता तीसं भत्ताई अणसणाए छेदेइ, छेदेत्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कंते कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमठितीएसु देवकिब्बिसिएसु देवेसु देवकिब्बिसियत्ताए उववन्ने। १०२. श्रमण भगवान महावीर स्वामी द्वारा जमालि अनगार को इस प्रकार कहे जाने पर, यावत् प्ररूपित करने पर भी जमालि ने इस बात पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं की और श्रमण भगवान ॐ महावीर की इस बात पर अश्रद्धा, अप्रतीति और अरुचि करता हुआ जमालि अनगार दूसरी बार भी है + स्वयं भगवान के पास से चला गया। इस प्रकार भगवान से पृथक् विचरण करके जमालि ने बहुत से ही असद्भूत (तथ्यहीन-असत्य) भावों को प्रकट करके तथा मिथ्यात्व के अभिनिवेशों (हठाग्रहों) से अपनी के आत्मा को. पर को तथा उभय (दोनों) को भ्रान्त (गुमराह) करते हुए एवं मिथ्याज्ञानयुक्त करते हुए बहुत वर्षों तक श्रमण-पर्याय का पालन किया। अन्त में अर्द्ध-मास (१५ दिन) की संलेखना द्वारा अपने * शरीर को कृश करके तथा अनशन द्वारा तीस भक्तों का छेदन (त्याग) करके, (पूर्वोक्त मिथ्यात्वगत भगवती सूत्र (३) (494) Bhagavati Sutra (3) 05555555555555555555555555555555543 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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