Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 573
________________ 步步步步步步步 555555 १००. भगवान गौतम द्वारा इस प्रकार (दो प्रश्नों के) जमालि अनगार से कहे जाने पर वह है (जमालि) शंकित (अपने कथन में संशययुक्त) एवं कांक्षित (दूसरों के सिद्धान्त पर रुचियुक्त) हुआ, यावत् कलुषित परिणाम वाला हुआ। वह भगवान गौतम स्वामी को (इन दो प्रश्नों का) किचिंत् भी ॐ उत्तर देने में समर्थ न हुआ। (फलतः) वह मौन होकर चुपचाप खड़ा रहा। 100. When Bhagavan Gautam put forth thus (the two questions) before Jamali, he was filled with doubt (shanka), desire for other faith (kanksha) ... and so on up to... spite (kalush). He failed to provide any answer to the two questions of) Gautam Swami and stood dumb. भगवान द्वारा समाधान ANSWER BY BHAGAVAN १०१. 'जमाली' ति समणे भगवं महावीरे जमालिं अणगारं एवं वयासी-अत्थि णं जमाली ! ममं बहवे अंतेवासी समणा निग्गंथा छउमत्था जे णं पभू एयं वागरणं वागरित्तए जहा णं अहं, नो चेव णं ॐ एयप्पगारं भासं भासित्तए जहा णं तुम। सासए लोए जमाली ! जं णं कयावि णासि ण, कयावि ण भवति ण, न कदावि ण भविस्सइ; भुविं ॐ च, भवइ य, भविस्सइ य, धुवे णितिए सासए अक्खए अव्वए अवट्ठिए णिच्चे। असासए लोए जमाली ! जओ ओसप्पिणी भवित्ता उस्सप्पिणी भवइ, उस्सप्पिणी भवित्ता ओसप्पिणी भवइ। ऊ सासए जीवे जमाली ! जं णं न कयाइ णासि जाव णिच्चे। असासए जीवे जमाली ! जं णं नेरइए # भवित्ता तिरिक्खजोणिए भवइ, तिरिक्खजोणिए भवित्ता मणुस्से भवइ, मणुस्से भवित्ता देवे भवइ। १०१. तब श्रमण भगवान महावीर ने जमालि अनगार को सम्बोधित करके कहा-जमालि ! मेरे बहुत से श्रमण-निर्ग्रन्थ अन्तेवासी (शिष्य) छद्मस्थ हैं जो इन प्रश्नों का उत्तर देने में उसी प्रकार समर्थ में हैं, जिस प्रकार मैं हूँ, फिर भी (जिस प्रकार तुम अपने आपको सर्वज्ञ, अर्हत्, जिन और केवली कहते म हो;) इस प्रकार की भाषा वे नहीं बोलते। ॐ जमालि ! लोक शाश्वत है, क्योंकि यह कभी नहीं था, ऐसा नहीं है; कभी नहीं है, ऐसा भी नहीं + और कभी न रहेगा, ऐसा भी नहीं है; किन्तु लोक था, है और रहेगा। यह ध्रुव, नित्य, शाश्वत, अक्षय, । अव्यय, अवस्थित और नित्य है। (इसी प्रकार) हे जमालि ! (दूसरी अपेक्षा से) लोक अशाश्वत (भी) है, ॐ क्योंकि अवसर्पिणी काल होकर उत्सर्पिणी काल होता है, फिर उत्सर्पिणी काल (व्यतीत) होकर 5 अवसर्पिणी काल होता है। ॐ हे जमालि ! जीव शाश्वत है; क्योंकि जीव कभी नहीं था, ऐसा नहीं है; कभी नहीं है, ऐसा नहीं और कभी नहीं रहेगा, ऐसा भी नहीं है; इत्यादि यावत् जीव नित्य है। (इसी प्रकार) हे जमालि ! (किसी अपेक्षा से) जीव अशाश्वत (भी) है, क्योंकि वह नैरयिक होकर तिर्यंचयोनिक हो जाता है, तिर्यंचयोनिक 卐 होकर मनुष्य हो जाता है और (कदाचित्) मनुष्य होकर देव हो जाता है। 101. At that time Shraman Bhagavan Mahavir addressed ascetic Jamali - "Jamali! Many of my ascetic disciples are chhadmasth, and 卐5555555555555555555555555555555555555555555553 नवम शतक : तेतीसवाँ उद्देशक (493) Ninth Shatak : Thirty Third Lesson 卐 四FFFFFF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听四 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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