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८५. तब जमालि अनगार ने श्रमण भगवान महावीर से दूसरी बार और तीसरी बार भी इसी
प्रकार कहा- भंते ! आपकी आज्ञा मिल जाये तो मैं पाँच सौ अनगारों के साथ अन्य जनपदों में विहार
करना चाहता हूँ ।
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85. Then ascetic Jamali repeated his request second and third time. "Bhante! If you kindly permit me I would like to move away from this region with my five hundred ascetics and roam about (in other areas)."
८६. तए णं समणे भगवं महावीरे जमालिस्स अणगारस्स दोच्चं पि तच्चं पि एयमट्ठ णो आढाइ जाणिी चिट्ठ |
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86. Even the second and third time Shraman Bhagavan Mahavir paid f no attention ... and so on up to ... remained silent.
८६. जमालि अनगार के दूसरी बार और तीसरी बार भी वही बात कहने पर श्रमण भगवान क महावीर ने इस बात का आदर नहीं किया, यावत् मौन रहे ।
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८७. तए णं से जमाली अणगारे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता समणस्स फ भगवओ महावीरस्स अंतियाओ बहुसालाओ चेइयाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता पंचहिं 5 अणगारसहिं सद्धिं बहिया जणवयविहारं विहरइ ।
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८७. तब ( ऐसी स्थिति में) जमालि अनगार ने श्रमण भगवान महावीर को वन्दन नमस्कार किया और फिर उनके पास से, बहुशालक उद्यान से निकला और फिर वह पाँच सौ अनगारों के साथ बाहर के (अन्य ) जनपदों में विचरण करने लगा ।
विवेचन : उक्त स्वतंत्र वर्णन से प्रतीत होता है कि जमालि अनगार द्वारा स्वतन्त्र विचरण की महत्त्वाकांक्षा फ एवं सर्वज्ञ- सर्वदर्शी भगवान द्वारा उसके स्वतन्त्र विचरण के पीछे अहंकार, महत्त्वाकांक्षा एवं अधैर्य के प्रादुर्भाव होने की और भविष्य में देव - गुरु आदि के विरोधी बन जाने की संभावना देखकर 'भाविदोषत्वेनोपेक्षणीयत्त्वादस्येति' स्वतन्त्र विहार की अनुज्ञा नहीं दी गई। किन्तु इस बात की अवहेलना करके 5 जमालि अनगार भगवान महावीर से पृथक् विहार करने लगे ।
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87. Then (under these circumstances) ascetic Jamali finally paid his homage and obeisance to Shraman Bhagavan Mahavir, came out of Bahushalak garden and commenced his independent itinerant way with his five hundred ascetics in other regions.
Elaboration From the aforesaid description it appears that Jamali was not given the permission to move about independently because omniscient Bhagavan Mahavir realized that the driving force in Jamali's 卐 mind was his ego, ambition, and impatience. This would ultimately lead him to defy the order and the guru. It was the future possibility of regression that restrained Bhagavan Mahavir from giving permission to Jamali and not due to any ill will. However, Jamali ignored this and went on his own.
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नवम शतक : तेतीसवाँ उद्देशक
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Ninth Shatak: Thirty Third Lesson
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