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७६. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स खत्तियकुंडग्गामं नगरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छमाणस्स सिंघाडग-तिग- चउक्क जाव पहेसु बहवे अत्थत्थिया जहा उववाइए जाव अभिनंदंता य अभित्थुणंता य एवं वयासी - जय जय णंदा ! धम्मेणं, जय जय णंदा ! तवेणं, जय जय णंदा ! भद्दं ते, अभग्गेहिं णाणदंसण-चरितमुत्तमेहिं अजियाइं जिणाहि इंदियाई, जियं च पालेहि समणधम्मं, जियविग्घो वि य वसाहि तं देव ! सिद्धिमज्झे, णिहणाहि य राग-दोसमल्ले तवेणं धितिधणियबद्धकच्छे, मद्दाहि अट्टकम्मसत्तू झाणेणं उत्तमेणं सुक्केणं, अप्पमत्तो हराहि आराहणपडागं च धीर ! तिलोक्करंगमज्झे, पावय वितिमिरमणुत्तरं केवलं च णाणं, गच्छ य मोक्खं परं पदं जिणवरोवदिट्टेणं सिद्धिमग्गेणं अकुडिलेणं, हंता परीसहचमुं, अभिभविय गामकंटकोवसग्गा णं, धम्मे ते अविग्घमत्थु । त्ति कट्टु अभिनंदंति य अभिधुणंति य ।
७६. जब क्षत्रियकुमार जमालि क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के मध्य में से होकर जा रहा था, तब शृंगाटक, त्रिक, चतुष्क यावत् राजमार्गों पर बहुत से अर्थार्थी ( धनार्थी ), कामार्थी इत्यादि लोग; औपपातिकसूत्र में कहे अनुसार इष्ट, कान्त, प्रिय आदि शब्दों से यावत् अभिनन्दन एवं स्तुति करते हुए ! इस प्रकार कहने लगे - " हे नन्द ( आनन्ददाता ) ! धर्म द्वारा तुम्हारी जय हो ! हे नन्द ! तप के द्वारा तुम्हारी जय हो ! हे नन्द ! तुम्हारा भद्र (कल्याण) हो ! हे देव ! अखण्ड उत्तम ज्ञान - दर्शन- चारित्र द्वारा ( अब तक) अविजित इन्द्रियों को जीतो और विजित श्रमणधर्म का पालन करो। हे देव ! विघ्नों को जीतकर सिद्धि (मुक्ति) में जाकर बसो ! तप से धैर्यरूपी कच्छ को अत्यन्त दृढ़तापूर्वक बाँधकर राग-द्वेषरूपी मल्लों को पछाड़ो ! उत्तम शुक्लध्यान के द्वारा अष्टकर्मशत्रुओं का मर्दन करो ! हे धीर !! अप्रमत्त होकर त्रैलोक्य के रंगमंच (विश्वमण्डप) में आराधनारूपी पताका ग्रहण करो (अथवा फहरा दो) और अन्धकाररहित (विशुद्ध प्रकाशमय ) अनुत्तर केवलज्ञान को प्राप्त करो ! तथा जिनवरोपदिष्ट सरल (अकुटिल ) सिद्धिमार्ग पर चलकर परम पद रूप मोक्ष को प्राप्त करो ! परीषह-सेना को नष्ट करो तथा इन्द्रियग्राम के कण्टकरूप ( प्रतिकूल ) उपसर्गों पर विजय प्राप्त करो ! तुम्हारा धर्माचरण निर्विघ्न हो!" इस प्रकार से लोग अभिनन्दन एवं स्तुति करने लगे।
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76. As Kshatriya youth Jamali passed through the city of Kshatriya Kundagram, on triangular courtyards (singhatak), crossings of three, four... and so on up to... highways, he was greeted with auspicious words in coveted, pleasant, lovable, likable, joyous, desirable and blissful voice by masses of people among whom were many who sought wealth, many who desired worldly pleasures, and many who only desired food. They uttered – “O source of joy! May you be victorious on the religious path O noble one! May you be victorious through austerities. May all go well with you O benefactor of the world! May you conquer the unconquerable sense organs through unhindered pure knowledge, perception and conduct, and follow the path of Shramans that you have accepted. O Divine one! May you cross all hurdles and attain liberation. With 4 patience and resolve, may you annihilate the adversaries in the form of
भगवती
सूत्र (३)
Bhagavati Sutra ( 3 )
(480)
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