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ॐ स्वस्तिक, (२) श्रीवत्स, (३) नन्द्यावर्त्त, (४) वर्धमानक, (५) भद्रासन, (६) कलश, (७) मत्स्य, और, म (८) दर्पण। इन आठ मंगलों के अनन्तर पूर्ण कलश चला; आकाश को स्पर्श करती हुई-सी वैजयन्ती E (ध्वजा) भी आगे यथानुक्रम से रवाना हुई। यावत् आलोक करते हुए और जय-जयकार शब्द का ॐ उच्चारण करते हुए अनुक्रम से आगे चले। इसके पश्चात् बहुत से उग्रकुल के, भोगकुल के क्षत्रिय + इत्यादि महापुरुषों के वर्ग से परिवृता होकर क्षत्रियकुमार जमालि के आगे, पीछे और आस पास चलने * लगे। यह समग्र वर्णन विस्तारयुक्त औपपातिकसूत्र में कूणिक के दर्शन मात्र प्रसंग अनुसार जान लेना ॐ चाहिए।
72. Once the palanquin was ready with Kshatriya youth Jamali and 4 others boarding the same and being lifted by one thousand bearers, it 4 was preceded by eight auspicious objects in this order — (1) Swastika (a 4 specific graphic design resembling the mathematical sign of addition
with a perpendicular line added to each of the four arms in clockwise direction), (2) Shrivats (a specific mark found on the chest of all Tirthankars), (3) Nandyavart (a specific elaborate graphic design
resembling an extended swastika), (4) Vardhamanak (a specific design of ___vessel), (5) Bhadrasan (a specific design of seat), (6) Kalash (an urn), (7), Matsya (a fish), and (8) Darpan (a mirror). These were followed by the
royal attendants carrying pitchers and jars filled with water ... and so on 卐 up to... the beautiful flag of victory (vijaya-vaijayanti) furling sky high
with the wind. (as mentioned in Aupapatik sutra) ... and so on up to... People followed hailing victory for the hero. Kshatriya youth Jamali's said palanquin was surrounded by many prominent persons belonging to
Ugra, Bhoga and other clans walking on its front, back and flanks. 4 Detailed description is as mentioned in Aupapatik sutra in context of King Kunik going to behold Bhagavan Mahavir.
७३. तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया ण्हाए कयबलिकम्मे जाव विभूसिए हत्थिखंधवरगए सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं उधुव्वमाणीहिं उधुव्बमाणीहिं हय-गय-रह+ पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिबुडे महया भड-चडगर जाव परिक्खित्ते जमालिस्स * खत्तियकुमारस्स पिट्ठओ पिट्ठओ अणुगच्छइ।
७३. तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने स्नान आदि किया। यावत् विभूषित होकर उत्तम हाथी के कंधे पर चढ़े और कोरण्टक पुष्प की माला से युक्त छत्र धारण किये हुए, श्वेत चामरों से म बिंजाते हुए, घोड़े, हाथी, रथ और श्रेष्ठ योद्धाओं से युक्त चतुरंगिणी सेना से परिवृत होकर तथा महासुभटों के समुदाय से घिरे हुए यावत् क्षत्रियकुमार के पीछे-पीछे चल रहे थे।
73. Kshatriya youth Jamali's father too took his bath ... and so on up to... embellished himself and rode the royal elephant. With an umbrella 4 decorated with garlands of Korantak flowers over his head, fanned with a
भगवती सूत्र (३)
(478)
Bhagavati Sutra (3)
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