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म ६६. उसके बाद क्षत्रियकुमार जमालि के दक्षिणपूर्व (आग्नेयकोण) में शृंगार गृह के तुल्य यावत्
रूप यौवन और विलास से युक्त एक श्रेष्ठ युवती विचित्र स्वर्णमय दण्ड वाले एक ताड़पत्र के पंखे को ॐ लेकर खड़ी हो गई।
66. After that came and stood, on the northeast of Kshatriya youth Jamali, a well embellished ... and so on up to... noble lady, carrying a 5 palm leaf fan with an exquisite handle made of gold.
६७. तए णं तस्स जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, कोडुंबियपुरिसे सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सरिसयं सरित्तयं सरिव्वयं सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वणगुणोववेयं एगाभरणवसणगहियनिज्जोयं कोडुबियवरतरुणसहस्सं सद्दावेह।
६७. तब क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा-'हे देवानुप्रियो ! ! शीघ्र ही एक सरीखे, समान त्वचा वाले, समान वय वाले, समान लावण्य, रूप और यौवन-गुणों से ॐ युक्त, एक सरीखे आभूषण, वस्त्र और परिकर धारण किये हुए एक हजार श्रेष्ठ कौटुम्बिक तरुणों को के बुलाओ।'
67. Now Kshatriya youth Jamali's father called his staff and said, "Beloved of gods! Without delay call here a thousand young men of \i similar complexion, age and endowed with similar qualities of beauty, 41
charm and youth to act as choicest attendants. They should be in similar dress, adornment and headgear.
६८. तए णं ते कोडुबियपुरिसा जाव पडिसुणेत्ता खिप्पामेव सरिसयं सरित्तयं जाव सद्दावेंति।
६८. तब वे कौटुम्बिक पुरुष स्वामी के आदेश को यावत् स्वीकार करके शीघ्र ही एक सरीखे, म समान त्वचा वाले यावत् एक हजार श्रेष्ठ कौटुम्बिक तरुणों को बुला लाए।
68. Then those staff members ... and so on up to... accepted their 45 masters order and soon called a thousand young men ... and so on up to... to act as choicest attendants.
६९. तए णं ते कोडंबियपुरिस (? तरुणा) जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिउणो कोडुंबियपुरिसेहिं + सद्दाविया समाणा हद्वतुट्ठ० ण्हाया कयबलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छित्ता एगाभरणवसणगहियनिज्जोया
जेणेव जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया तेणेव उवागच्छंति, तेणेव उवागच्छित्ता करयल जाव वद्धावेत्ता एवं के वयासी-संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! जं अम्हेहिं करणिज्जं।
६९. कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बुलाये हुए वे एक हजार तरुण सेवक हर्षित और सन्तुष्ट होकर, स्नानादि से निवृत्त होकर बलिकर्म, कौतुक, मंगल एवं प्रायश्चित्त करके एक सरीखे आभूषण और वस्त्र
तथा वेश धारण करके जहाँ जमालि क्षत्रियकुमार के पिता थे, वहाँ आए और हाथ जोड़कर यावत् उन्हें ॐ जय-विजय शब्दों से बधाकर बोले-हे देवानुप्रिय ! हमें जो कार्य करना है, उसका आदेश दीजिए।
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| भगवती सूत्र (३)
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Bhagavati Sutra (3)
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