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[Ans.] Gangeya ! Minimum are entries (praveshanak) among five- फ्र sensed beings. Much more than these are among four-sensed beings. Much more than these are among three-sensed beings. Much more than these are among two-sensed beings. Much more than these are among one-sensed beings.
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मनुष्य-प्रवेशनक प्रकार और भंग MANUSHYA-PRAVESHANAK TYPES AND ALTERNATIVES
३५. [ प्र. ] मणुस्सपवेसणए णं भंते ! कतिविहे पन्नत्ते ?
[उ. ] गंगेया ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा सम्मुच्छिममणुस्सपवेसणए, गब्भवक्कंतियमणुस्सपवेसणए य । ३५. [ प्र. ] भगवन् ! मनुष्य-प्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ?
[ उ. ] गांगेय ! मनुष्य-प्रवेशनक दो प्रकार का कहा गया है। वे इस प्रकार - ( १ ) सम्मूर्च्छिम मनुष्य-प्रवेशनक, और (२) गर्भजमनुष्य-प्रवेशनक ।
35. [Q.] Bhante ! How many types of Manushya-praveshanak (entrance into human genus) are there ?
[Ans.] Gangeya ! Manushya-praveshanak ( entrance into human genus) are said to be of two types (1) Sammurchhim Manushya - 5 praveshanak (entrance into the human genus of asexual origin) and (2) Garbhaj Manushya-praveshanak (entrance into the human genus of placental origin).
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३६. [ प्र. ] एगे भंते ! मणुस्से मणुस्सपवेसणए णं पविसमाणे किं सम्मुच्छिममणुस्सेसु होज्जा, गन्भवक्कंतियमणुस्सेसु होज्जा ?
[उ. ] गंगेया ! सम्मुच्छिममणुस्सेसु वा होज्जा, गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु वा होज्जा ।
For those of placental origin.
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३६. [ प्र. ] भगवन् ! मनुष्य-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ एक मनुष्य क्या सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होता है, अथवा गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न होता है ?
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[ उ. ] हे गांगेय ! वह या तो सम्मूर्च्छिम मनुष्यों में उत्पन्न होता है अथवा गर्भज मनुष्यों में उत्पन्न 卐 होता है।
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36. [Q.] Bhante ! When cne jiva (soul) enters the human genus does he
take birth among humans of asexual origin or those of placental origin?
[Ans.] Gangeya! It either gets born among humans of asexual origin
नवम शतक : बत्तीसवाँ उद्देशक
३७. [ प्र. ] दो भंते ! मणुस्सा० ? पुच्छा ।
[उ.] गंगेया ! सम्मुच्छिममणुस्सेसु वा होज्जा, गब्भवक्कंतियमणुस्सेसु वा होज्जा । अहवा एगे
सम्मुच्छिममणुस्सेसु वा होज्जा, एगे गन्भवक्कंतियमणुस्सेसु वा होज्जा । एवं एएणं कमेणं जहा नेपवेसण तहा मणुस्सपवेसणए वि भाणियव्वे जाव दस ।
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Ninth Shatak: Thirty Second Lesson
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