Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 547
________________ B ) )))))) )) ) ) ) ) )) )) 卐 卐 विवेचन : इस वर्णन से पता चलता है, उस युग में आभूषण-निर्माण तथा वस्त्र-निर्माण की कला अत्यन्त ॐ विकसित हो चुकी थी। जहाँ इतना कोमल, बारीक तथा कलापूर्ण वस्त्र तैयार होता था। Elaboration - This description provides an important information 15 about the advanced textile technology and craft of ornament making of 5 that period. The fineness of the cloth and the range of the ornaments described provide ample evidence of this fact. शिविकारोहण BOARDING THE PALANQUIN ५८. तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सदावेत्ता एवं वयासिॐ खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! अणेगखंभसयसनिविटुं लीलट्ठियसालभंजियागं जहा रायप्पसेणइज्जे विमाणवण्णओ जाव मणिरयणघंटियाजालपरिखित्तं पुरिससहस्सवाहणीयं सीयं उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता मम 5 एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह। ५८. तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा हे देवानुप्रियो ! शीघ्र ही सैकड़ों खंभों से युक्त, लीलापूर्वक खड़ी हुई पुतलियों वाली मणि-रत्नों की घंटियों फ़ के समूह से चारों ओर से घिरी हुई, हजार पुरुषों द्वारा उठाई जाने योग्य (विशाल) शिविका (पालकी) (तैयार करके) उपस्थित करो और मेरी इस आज्ञा का पालन करके मुझे पुनः निवेदन करो। 58. Now Kshatriya youth Jamali's father called his staff and said, 41 “Beloved of gods! Without delay arrange for a large palanquin with many 4 pillars, and decorated with figures of dancing damsels. It should be decorated with bunches of small gem studded bells all around. It should be so large as to be carried by one thousand persons. Do that and report back." ५९. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चप्पिणंति। ५९. इस आदेश को सुनकर कौटुम्बिक पुरुषों ने उसी प्रकार की शिविका तैयार करके यावत् 9 (उन्हें) निवेदन किया। 59. On getting this order the staff members arranged for the 3 described palanquin ... and so on up to... reported back.. म ६०. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे केसालंकारेणं वत्थालंकारेणं मल्लालंकारेणं आभरणालंकारेणं चउविहेणं अलंकारेण अलंकारिए समाणे पडिपुण्णालंकारे सीहासणाओ अन्भुढेइ, सीहासणाओ अन्भुटेत्ता + सीयं अणुप्पदाहिणीकरेमाणे सीयं दुरूहइ, दुरूहित्ता सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे सन्निसण्णे। ६०. तत्पश्चात् क्षत्रियकुमार जमालि केशालंकार, वस्त्रालंकार, माल्यालंकार और आभरणालंकार; के इन चार प्रकार के अलंकारों से अलंकृत यथास्थान साजसज्जा से युक्त होकर तथा प्रतिपूर्ण अलंकारों से सुसज्जित होकर सिंहासन से उठा। वह दक्षिण की ओर से (अथवा शिविका की प्रदक्षिणा करते हुए) ॐ शिविका पर चढ़ा और श्रेष्ठ सिंहासन पर पूर्व की ओर मुँह करके आसीन हुआ। LEEEEEE454544 नवम शतक : तेतीसवाँ उद्देशक (479) Ninth Shatak : Thirty Third Lesson Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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