Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 520
________________ बफफफफफफ ५ २५. तए णं से कंचुइज्जपुरिसे जमालिणा खत्तियकुमारेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ० समणस्स ५ भगवओ महावीरस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल० जमालिं खत्तियकुमारं जएणं विजएणं वद्धावेइ, Y 5 वद्धावेत्ता एवं वयासी - 'णो खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज खत्तियकुंडगामे नयरे इंदमहे इ वा जाव निग्गच्छंति । ५ y 5 卐 एवं खलु देवाणुप्पिया ! अज्ज समणे भगवं महावीरे आइगरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी माहणकुंडग्गामस्स 5 नगरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं उग्गहं जाव विहरति, तए णं एए बहवे उग्गा भोगा जाव ५ फ अप्पेगइया वंदणवत्तियं जाव निग्गच्छंति । 4 २५. तब जमालि क्षत्रियकुमार के इस प्रकार पूछने पर वह कंचुकी पुरुष अत्यन्त हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ । उसने श्रमण भगवान महावीर का (नगर में) आगमन जानकर एवं निश्चित करके (पुनः आकर ) हाथ जोड़कर जय-विजय ध्वनि से जमालि क्षत्रियकुमार को बधाई दी । तत्पश्चात् उसने इस प्रकार कहा - 'हे देवानुप्रिय ! आज क्षत्रियकुण्डग्राम नगर के बाहर इन्द्र आदि का उत्सव नहीं है, जिसके कारण यावत् लोग नगर से बाहर जा रहे हैं, किन्तु हे देवानुप्रिय ! आदिकर यावत् सर्वज्ञ - सर्वदर्शी श्रमण 5 भगवान महावीर स्वामी ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर के बाहर बहुशाल नामक उद्यान में अवग्रह ग्रहण करके यावत् विचरते हैं; इसी कारण ये उग्रकुल, भोगकुल आदि के क्षत्रिय आदि तथा और भी अनेक जन वन्दन (धर्मश्रवण) के लिए यावत् जा रहे हैं।' ५ 卐 卐 5 25. The attendant was excited at this question from Jamali. Finding about the arrival of Shraman Bhagavan Mahavir the attendant returned and explained to Jamali after joining his palms and wishing him victory फ (formal greeting), “Beloved of gods! It is not because of some religious y festival that the crowd is going in one particular direction. Today Shraman Bhagavan Mahavir, the founder of the religious ford, has arrived in the town and settled in the Bahushal garden. That is why all the aforesaid groups of people are going to pay their homage to him." २६. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे कंचुइज्जपुरिसस्स अंतिए एयम सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ० कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, कोडुंबियपुरिसे सद्दावइत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंट आसरहं जुत्तामेव उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चष्पिणह । 卐 卐 २६. तदनन्तर कंचुकीपुरुष से यह बात सुनकर और हृदय में धारण करके (निश्चय करके) 5 जमालि क्षत्रियकुमार हर्षित एवं सन्तुष्ट हुआ। उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और बुलाकर इस प्रकार कहा - 'देवानुप्रियो ! तुम शीघ्र ही चार घण्टा वाले अश्वरथ को जोतकर यहाँ उपस्थित करो और 5 मेरी इस आज्ञा का पालन करके निवेदन करो।' 卐 卐 卐 26. Jamali, the Kshatriya youth, was pleased to get this information from the attendant. He called members of his staff and said, "Beloved of gods! Prepare my horse-drawn chariot with four bells and bring it here immediately and report to me once you have done as ordered." भगवती सूत्र (३) फ्र Jain Education International (448) For Private & Personal Use Only Bhagavati Sutra (3) 4 ५ 또 또 또 5 ५ ५ ५ ५ फ्र फ्र www.jainelibrary.org

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