Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 528
________________ குதS*கதிமிததமிதிதிமிதிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிதமிதிதி தத்திததிதிதிமிதிததிததததததததததததததததததததததததததததததததபூதிமிழி 卐 5 जीवन की चंचलता का कथन LIFE IS EPHEMERAL अम्म ! ३६. (जमालि) तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मा- पियरो एवं वयासी - तहा वि ताओ ! जं णं तुब्भे मम एवं वदह 'तुमं सि णं जाया ! अम्हं एगे पुत्ते इट्ठे कंते तं चेव जाव पव्वइहिसि', एवं खलु अम्म ! ताओ! माणुस्सए भवे अणेगजाइ - जरा - रोग - सारीर - माणसपकाम- - दुक्खवेयणवसण-सतोवद्दवाभिभूए अधुवे अणितिए असासए संझन्भरागसरिसे जलबुब्बुदसमा 5 कुसग्गजलबिंदुसन्निभे सुविणगदंसणोवमे विज्जुलयाचंचले अणिच्चे सडण - पडण - विद्धंसणधम्मे पुव्विं व पच्छा वा अवस्सविप्पजहियव्वे भविस्सइ, से केस णं जाणइ अम्म! ताओ! के पुव्विं गमणयाए ? के पच्छा गमणयाए ? तं इच्छामि णं अम्म ! ताओ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइत्तए । 5 5 卐 ३६. (माता का कथन सुनकर ) क्षत्रियकुमार जमालि ने अपने माता-पिता से इस प्रकार कहा हे ५ माता-पिता ! अभी जो आपने कहा कि हे पुत्र ! तुम हमारे इकलौते पुत्र हो, इष्ट, कान्त आदि हो, 4 यावत् हमारे कालगत होने पर प्रव्रजित होना, इत्यादि; ( उस विषय में मुझे यह कहना है कि ) माताजी ! ५ पिताजी ! यों तो यह मनुष्य-जीवन जन्म, जरा, मृत्यु, रोग तथा शारीरिक और मानसिक अनेक दुःखों 卐 की वेदना से और सैकड़ों व्यसनों (कष्टों) एवं उपद्रवों से ग्रस्त है। अध्रुव, है, अनियत है, अशाश्वत है, 5 卐 卐 卐 卐 सन्ध्याकालीन बादलों के रंग-सदृश क्षणिक है, जल-बुद्बुद के समान (क्षण विनाशी) है, कुश की नोंक पर रहे हुए जलबिन्दु के समान ( चंचल) है, स्वप्नदर्शन के तुल्य (अविश्वसनीय) है, विद्युतलता की चमक के समान चंचल और अनित्य है। सड़ने, पड़ने, गलने और विध्वंस होने के स्वभाव वाला है। पहले या पीछे इसे अवश्य ही छोड़ना पड़ेगा। अतः हे माता-पिता ! यह कौन जानता है कि हममें से कौन पहले जायेगा ( मरेगा) और कौन पीछे जायेगा ? इसलिए हे माता-पिता ! मैं चाहता हूँ कि आपकी 5 मिल जाए तो मैं श्रमण भगवान महावीर के पास मुण्डित होकर यावत् प्रव्रज्या अंगीकार कर लूँ । 36. Kshatriya youth Jamali replied to his parents "Father and mother! You just said to me that I am your only and cherished... and so अनुज्ञा on up to... beloved son. ... and so on up to... only when you breathe your 5 of vices and torments. It is transient (adhruva), uncertain ( aniyat) and temporary (ashashvat). Like the hue of the evening sky, like bubbles in 卐 卐 卐 last I should get initiated. In this regard (this is what I have to say) please know that this human life is plagued by birth, dotage, death, diseases, numerous physical and mental afflictions as well as hundreds water, like dewdrops on grass-tip, like a dream or the flash of lightening, this human life is short lived and ephemeral. Its nature is to rot, fall, and get destroyed. Sooner or later one has to part with it. Therefore, O parents! Who knows which one of us will die first and who decay 5 卐 भगवती सूत्र (३) (456) Jain Education International 55 Bhagavati Sutra (3) 05 55 5 5 5 5 5 5 5 55 55 5555555595555555552 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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