Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 540
________________ 2555555555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 2555 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 555 5505 55 55 55555555 5952 卐 फ्र 卐 bhakt food prepared for distributing in drought stricken areas. Glanbhakt - food prepared for the ailing. Vardalika-bhakt - food prepared for a rainy day or difficult times. Praghoorn-bhakt - food prepared for guests. Shayyatar-pind food from a house that provides facilities to ascetics for staying overnight. Raj-pind - food from a king's kitchen or very tasty and nutritious food. ४४. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मा- पियरो एवं वयासी - तहा वि णं तं अम्म ! ताओ ! जं णं तुभे ममं एवं वदह - एवं खलु जाया ! निग्गंथे पावयणे सच्चे अणुत्तरे केवले तं चैव जाव पव्वइहिसि । एवं खलु अम्म ! ताओ ! निग्गंथे पावयणे कीवाणं कायराणं कापुरिसाणं इहलोगपडिबद्धाणं परलोगपरम्मुहाणं विसयतिसियाणं दुरणुचरे, पागयजणस्स । धीरस्स निच्छियस्स ववसियस्स नो खलु एत्थं किंचि वि दुक्करं करणयाए, तं इच्छामि णं अम्म ! ताओ ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्वइत्तए । ४४. तब क्षत्रियकुमार जमालि ने माता-पिता को उत्तर देते हुए कहा- हे माता-पिता ! आप मुझे यह जो कहते हैं कि यह निर्ग्रन्थ-प्रवचन सत्य है, अनुत्तर है, अद्वितीय है, यावत् तू समर्थ नहीं है इत्यादि यावत् बाद प्रव्रजित होना; किन्तु हे माता - पिता ! यह निश्चित है कि क्लीबों (नामर्दों), कायरों, कापुरुषों तथा इस लोक में आसक्त और परलोक में पराङ्मुख (परलोक की चिंता से रहित ) एवं विषयभोगों की तृष्णा वाले पुरुषों के लिए तथा प्राकृतजन (साधारण व्यक्ति) के लिए इस निर्ग्रन्थ- प्रवचन (धर्म) का आचरण करना दुष्कर है; परन्तु साहसिक, दृढ़ निश्चय एवं साधु नर के लिए संकलित पुरुष के लिए इसका आचरण करना कुछ भी दुष्कर नहीं है । इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप मुझे ( प्रव्रज्या - ग्रहण की) आज्ञा दे दें तो मैं श्रमण भगवान महावीर के पास दीक्षा ले लूँ । 44. Jamali, the Kshatriya youth, replied, “Parents! You say that the word of the Nirgranth is true and unique and so on up to... That is beyond the limits of my tolerance... and so on up to... therefore I should get initiated into the order later. But, parents, please know that this path of asceticism is difficult only for a weakling, a coward, spineless and other such timorous persons and also for those who are deeply involved only with earthly desires and pleasures having no awareness for the happiness of the other world or the next life. But it is not at all difficult for the brave and composed ones who have strong determination. As such, seeking your permission I wish to get initiated without any delay." प्रव्रज्या - ग्रहण की अनुमति PERMISSION FOR INITIATION ४५. तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मा- पियरो जाहे नो संचाएंति विसयालोमाहि य विसयपडिकूलाहि य बहूहि य आघवणाहि य पण्णवणाहि य सन्नवणाहि य विष्णवणाहि य आघवेत्तए वा जाव विष्णवेत्त वा ताहे अकामाई चेव जमालिस्स खत्तियकुमारस्स निक्खमणं अणुमन्त्रित्था । भगवती सूत्र (३) (466) Jain Education International फफफफफफफ Bhagavati Sutra (3) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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