Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 542
________________ -55 5555 5 5 5 5 5 555 55555555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5555555 5 5 5 5 5 5 – 卐 फ्र 卐 फ्र **** ४८. तणं ते कोडुंबियपुरिसा तहेव जाव पच्चष्पिणंति । ४८. इस पर कौटुम्बिक पुरुषों ने उनकी आज्ञानुसार कार्य करके आज्ञा वापस सौंपी। 48. In due course the attendants reported back about completion of the order. ४९. तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मा- पियरो सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहं निसीयावेंति, निसीयावेत्ता अट्ठसएणं सोवप्पियाणं कलसाणं एवं जहा रायप्पसेणइज्जे जाव अट्ठसएणं भोमिज्जाणं कलसाणं सव्विड्डीए जाव रवेणं महया महया निक्खमणाभिसेगेणं अभिसिंचाइ, निक्खमणाभिसेगेण अभिसिंचित्ता करयल जाव जएणं विजएणं वद्धावेंति, जएणं विजएणं वद्धावेत्ता एवं वयासी-भण जाया ! किं देमो ? किं पयच्छामो ? किणा वा ते अट्ठो ? ४९. तत्पश्चात् जमालि क्षत्रियकुमार के माता-पिता ने उसे उत्तम सिंहासन पर पूर्व की ओर मुख करके बिठाया। फिर एक सौ आठ सोने के कलशों से इत्यादि जिस प्रकार राजप्रश्नीयसूत्र में कहा है, तदनुसार यावत् एक सौ आठ मिट्टी के कलशों से सर्वऋद्धि (छत्र आदि राजचिह्न रूप ऋद्धि) के साथ यावत् (वाद्यों के) महाशब्द के साथ निष्क्रमणाभिषेक किया। निष्क्रमणाभिषेक पूर्ण होने के बाद ( मालिकुमार के माता-पिता ने) हाथ जोड़कर जय-विजय शब्दों से उसे बधाया । फिर उन्होंने उससे कहा - 'पुत्र ! बताओ, हम तुम्हें विशेष रूप में क्या दें ? तुम्हारे किस कार्य में क्या (सहयोग) दें ? तुम्हारा क्या प्रयोजन है ?' 49. Then Kshatriya youth Jamali's parents seated him facing east on a grand throne. Having done that they performed the ritual of prerenunciation anointing (nishkramanabhishek) with grand fanfare (including royal canopy and other regalia) using one hundred eight golden urns... and so on up to... one hundred eight earthen urns, as described in Rajaprashniya Sutra. At the conclusion of the prerenunciation anointing they (the parents) greeted him with joined palms and hails of victory. Finally they said . “Son! Tell us what may we give to you? In what mission may we assist you? What is it that you want us to do?" ५०. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मा- पियरो एवं वयासी - इच्छामि णं अम्म ! ताओ ! कुत्तियावणाओ रयहरणं च पडिग्गहं च आणिउं कासवगं च सद्दाविरं । ५०. क्षत्रियकुमार जमालि ने माता-पिता से कहा- हे माता-पिता ! मैं कुत्रिकापण (देवाधिष्टित दुकान जहाँ सब कुछ मिलता हो) से रजोहरण और पात्र मँगवाना चाहता हूँ और नापित को बुलाना चाहता हूँ। 50. Jamali, the Kshatriya youth, replied. . “Parents! I want to get an ascetic-broom (rajoharan) and ascetic-bowls (paatra) from the market and also to call the barber." भगवती सूत्र (३) (468) Jain Education International கதிததமிதிமிததமிழ*******************மிதததி Bhagavati Sutra (3) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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