Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 543
________________ नागगगगगगगगगगगगगगगा-1-1-1-1-गाना नागाना नागामानानानागाना ५१. तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सिरिघराओ तिण्णि सयसहस्साई गहाय सयसहस्सेणं सयसहस्सेणं कुत्तियावणाओ रयहरणं च पडिग्गहं च आणेह, सयसहस्सेणं च कासवगं सद्दावेह। ___ ५१. तब क्षत्रियकुमार जमालि के पिता ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और कहा-“देवानुप्रियो ! शीघ्र ही श्रीघर (भण्डार) से तीन लाख स्वर्ण-मुद्राएँ (सोनैया) निकालकर उनमें से एक-एक लाख 卐 सोनैया देकर कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र ले आओ तथा (शेष) एक लाख सोनैया देकर नापित : # को बुलाओ।" 5 51. Kshatriya youth Jamali's father called his attendants and F instructed them - “Beloved of gods! Be expeditious and collect three fi hundred thousand gold coins from the treasury. Then spend one hundred thousand each for ascetic-broom and bowl, and the remaining one hundred thousand for the barber to be called.” ५२. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिउणा एवं वुत्ता समाणा हद्वतुट्ठा करयल जाव पडिसुणित्ता खिप्पामेव सिरिघराओ तिण्णि सयसहस्साइं तहेव जाव कासवगं सद्दावेंति। ५२. जमालि कुमार के पिता की उपर्युक्त आज्ञा सुनकर कौटुम्बिक पुरुष बहुत ही हर्षित एवं सन्तुष्ट हुए। उन्होंने हाथ जोड़कर यावत् स्वामी के वचन स्वीकार किये और शीघ्र ही श्रीघर (भण्डार) से तीन लाख स्वर्ण-मुद्राएँ निकालकर कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र लाये तथा नापित को बुलाया। 52. The attendants felt pleased and honoured to get this order from Jamali's father. They joined their palms ... and so on up to... accepted their master's order. They immediately collected three hundred thousand gold coins from the treasury and brought the ascetic-broom and bowl as E well as called the barber.” ५३. तए णं से कासवए जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिउणो कोडुंबियपुरिसेहिं सद्दाविए समाणे हटे तुढे पहाए कयबलिकम्मे जाव सरीरे जेणेव जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पिया तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता करयल० जमालिस्स खत्तियकुमारस्स पियरं जएणं विजएणं वद्धावेइ, जएणं विजएणं 5 वद्धावित्ता एवं वयासी-संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! जं मए करणिज्ज। ५३. फिर जमालि के पिता के आदेश से कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा नाई को बुलाये जाने पर वह बहुत ही प्रसन्न और तुष्ट हुआ। उसने स्नानादि किया, यावत् शरीर को अलंकृत किया, फिर जहाँ जमालि के पिता थे, वहाँ आया और उन्हें जय-विजय शब्दों से बधाया, फिर इस प्रकार कहा-“हे देवानुप्रिय ! के । मुझे करने योग्य कार्य का आदेश दीजिए।" 53. When the barber got the call he felt very much pleased and honoured. He took his bath ... and so on up to... embellished himself. He then came to Jamali's father, greeted him with hails of victory and said – “Beloved of gods! Kindly instruct me what to do?" 84555555555555555555555555555;)))))))))))))))) नवम शतक : तेतीसवाँ उद्देशक (469) Ninth Shatak : Thirty Third Lesson 85555555555555555555555555555555555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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