Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

Previous | Next

Page 533
________________ குழத்தமி*******மிமிதத******************** फ्र ३९. (माता-पिता) तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मा- पियरो एवं वयासी - इमाओ य ते जाया! 5 विपुलकुलबालियाओ कलाकुसलसव्वकाललालिय- सुहोचियाओ मद्दवगुणजुत्त - निउणविणओवयारपडिय - वियक्खणाओ मंजुलमिय - महुर - भणिय - विहसिय- विप्पेक्खिय - गतिविलास - चिट्ठियविसारदाओ अविकलकुल - सीलसालिणीओ विसुद्धकुलवंस - संताणतंतुवद्धणपगब्भ मणाणुकूलहियइच्छियाओ अट्ठ तुज्झ गुणवल्लभाओ उत्तमाओ निच्चं भावाणुरत्तसव्वंगसुंदरीओ भारियाओ, तं भुंजाहि ताव जाया ! एतहिं सद्धिं विउले माणुस्सए कामभोगे, तओ पच्छा भुत्तभोगी विसयविगयवोच्छिन्नकोउ - हल्ले अम्हेहिं कालगएहिं जाव पव्वइहिसि । ३९. माता-पिता ने तब क्षत्रियकुमार जमालि से इस प्रकार कहा - पुत्र ! ये तेरी गुणवल्लभा, उत्तम, तुझमें नित्य भावानुरक्त, सर्वांगसुन्दरी आठ पत्नियाँ हैं, जो विशाल कुल में उत्पन्न बालिकाएँ ( नवयौवनाएँ) हैं, कलाकुशल हैं, सदैव लालित (लाड़-प्यार में रही हुई) और सुखभोग के योग्य हैं। ये मृदुतागुण से युक्त, निपुण, विनय - व्यवहार (उपचार) में कुशल एवं विचक्षण हैं। ये मंजुल, परिमित और मधुरभाषिणी हैं। ये (स्त्रियोचित ) हास्य, विप्रेक्षित ( कटाक्षपात), गति, विलास और चेष्टाओं में विशारद हैं। निर्दोष कुल और शील से सुशोभित हैं, विशुद्ध कुलरूप वंशतन्तु की वृद्धि करने में समर्थ एवं पूर्ण यौवन वाली हैं । ये मनोनुकूल एवं हृदय को इष्ट हैं। तेरी भावनाओं के अनुसार चलने वाली हैं। अतः हे पुत्र ! तू इनके साथ मनुष्य - सम्बन्धी विपुल कामभोगों का उपभोग कर और बाद में जब तू भुक्तभोगी हो जाए और विषय विकारों में तेरी उत्सुकता ( रुचि) समाप्त हो जाए, तब हमारे कालधर्म को प्राप्त हो जाने पर यावत् तू प्रव्रजित हो जाना । 39. The parents then said to Kshatriya youth Jamali "Son! You have these eight beautiful wives. They are all perfectly beautiful, young and of noble lineage. Each one of them is skilled in arts, brought up with care, devoted to you and worthy of all comforts. They are tender, capable, modest and unique. They are delightful as well as measured and sweet 5 in speech. They are accomplished in ( womanly) laughter, gestures, movement, sensual enjoyments and other such acts. They are of unblemished lineage and endowed with noble virtues. They are youthful and capable of advancing the thread of pure lineage. They are lovable, desirable and accommodating to your wishes. Therefore, son, enjoy all the pleasures and joys of your marital life with them. When you are fully contented and apathetic to mundane desires, and after we are dead, then go and get initiated." कामभोगों की असारता WORTHLESSNESS OF PLEASURES ४०. ( जमालि) तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मा- पियरो एवं वयासी - तहा वि णं तं अम्म ! ताओ! जं णं तुब्भे मम एवं वयह 'इमाओ ते जाया ! विपुलकुल० जाव पव्वइहिसि' एवं खलु अम्म! ताओ! नवम शतक: तेतीसवाँ उद्देशक वयभाविणीओ ( 459 ) Jain Education International Ninth Shatak: Thirty Third Lesson 25 55 55 5 5 5 5 5 5 55 55 5 5 5 5 5 5 5 5 55 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55555552 For Private & Personal Use Only 255555555955555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 595952 卐 www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664