Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 525
________________ 855555555555555555555岁555555555555555 ॥ संसारभउबिग्गे, भीए जम्मण-मरणेणं, तं इच्छामि णं अम्म ! ताओ ! तुब्भेहिं अन्भुणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। ____३३. तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि ने दूसरी बार भी अपने माता-पिता से इस प्रकार कहा हे माता-पिता ! मैंने श्रमण भगवान महावीर से वास्तविक धर्म सुना, जो मुझे इष्ट, अभीष्ट और रुचिकर ॐ लगा, इसलिए हे माता-पिता ! मैं संसार (चतुर्गति रूप संसार) के भय से उद्विग्न हो गया हूँ, जन्म-मरण से भयभीत हुआ हूँ। अतः मैं चाहता हूँ कि आप दोनों की आज्ञा प्राप्त होने पर श्रमण भगवान महावीर के पास मुण्डित होकर गृहवास त्याग करके अनगार धर्म में प्रवजित होऊँ। 33. Once again Jamali, the Kshatriya youth, submitted to his parents --- "Father and mother! I have been to the discourse of Shraman Bhagavan Mahavir. It has attracted me, it has inspired me strongly and \ I have developed an affinity for it. O Father and mother! I am now haunted by a fear of this mundane existence (defined by cycles of rebirth in four genuses), I am afraid of birth, dotage and death. As such, I wish to seek your permission, go to Shraman Bhagavan Mahavir and get initiated into his ascetic order after renouncing the worldly life and getting my head tonsured." माता शोकमग्न हुईं MOTHER'S GRIEF ३४. तए णं सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माता तं अणिटुं अकंतं अप्पियं अमणुण्णं अमणामं असुयपुव्वं गिरं सोच्चा निसम्म सेयागयरोमकूव-पगलंतविलीणगत्ता सोगभरपवेवियंगमंगी नित्तेया . दीणविमणवयणा करयलमलिय ब कमलमाला तक्खणओलुग्गदुब्बलसरीरलायन्नसुननिच्छाया गयसिरीया ॐ पसिढिलभूसण-पडंतखुण्णियसंचुण्णियधवलवलयपन्भट्ठउत्तरिज्जा मुच्छावसणट्ठचेतगुरुई सुकुमाल विकिण्णकेसहत्था परसुणियत्त व्व चंपगलता निव्वत्तमहे ब्व इंदलट्ठी विमुक्कसंधिबंधणा कोट्टिमतलंसि ॐ 'धस' त्ति सबंगेहिं सन्निवडिया। ३४. तब क्षत्रियकुमार जमालि की माता उसके उस (पूर्वोक्त) अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ, ॐ मन को अप्रिय और अश्रुतपूर्व (पहले कभी नहीं सुने हुए) (आघातकारक) वचन सुनकर और ऊ + अवधारण करके (शोकमग्न हो गई।) रोमकूपों से बहते हुए पसीने से उसका शरीर भीग गया। शोक के भार से उसके अंग-अंग काँपने लगे। (चेहरे की कान्ति) निस्तेज हो गई। उसका मुख दीन और उन्मना + (उदास) हो गया। हथेलियों से मसली हुई कमलमाला की तरह उसका शरीर तत्काल मुझ गया एवं 5 दुर्बल हो गया। वह लावण्यशून्य, कान्तिरहित और शोभाहीन हो गई। (उसके शरीर पर पहने हुए) 卐 आभूषण ढीले हो गये। उसके हाथों की धवल चूड़ियाँ (श्वेत कंगन) नीचे गिरकर चूर-चूर हो गईं। म उसका उत्तरीय वस्त्र (ओढ़ना) अंग से हट गया। मूर्छावश उसकी चेतना नष्ट हो गई। शरीर ॐ भारी-भारी हो गया। उसकी सुकोमल केशराशि बिखर गई। वह कुल्हाड़ी से काटी हुई चम्पकलता की नवम शतक : तेतीसवाँ उद्देशक (453) Ninth Shatak : Thirty Third Lesson 85555555555555555555555555555555555555555555558 Ninth 8555555555555))))) ) )5958 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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