Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 509
________________ ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת 199 5 )))) ))))))) )))))) ))))))) - विवेचन : पाँच अभिगम-त्यागी महापुरुषों के पास जाने की एक विशिष्ट मर्यादा को शास्त्रीय परिभाषा में F 'अभिगम' कहा जाता है। वे पाँच प्रकार के हैं परन्तु स्त्री और पुरुष के लिए तीसरे अभिगम में अन्तर है। श्रावक के लिए है एक पट वाले दुपट्टे का उत्तरासंग करना, जबकि श्राविका के लिए है-विनय से शरीर को झुकाना। साधु-साध्वियों के पास जाने के लिए इन पाँच अभिगमों का पालन करना आवश्यक है। Elaboration - Five Abhigams - A special set of codes observed while approaching ascetics and other great renouncers is called abhigam. They are five in number. Of these the third one has variations for male and fi female. A man has to set his one-piece scarf on his shoulders in a specific 45 way whereas a woman has just to humbly bow down. While approaching male or female ascetics it is mandatory to observe this set of five codes. देवानन्दा की मातृवत्सलता DEVANANDA'S MOTHERLY AFFECTION १३. तए णं सा देवाणंदा माहणी आगयपण्हया पप्फुयलोयणा संवरियवलयबाहा कंचुयपरिक्खित्तिया धाराहयकलंबगं पिव समूससियरोमकूवा समणं भगवं महावीरं अणिमिसाए दिट्ठीए देहमाणी देहमाणी चिट्ठइ। १३. तदनन्तर उस देवानन्दा ब्राह्मणी के पाना चढ़ा (अर्थात् भगवान को देखने मात्र वात्सल्य के कारण उसके स्तनों में दूध आ गया)। उसके नेत्र हर्षाश्रुओं से भीग गये। हर्ष से प्रफुल्लित होती हुई है उसकी बाहों को वलयों ने रोक लिया। (अर्थात् उसकी भुजाओं के कड़े-बाजूबंद तंग हो गये)। - हर्षातिरेक से उसकी कञ्चुकी (कांचली) विस्तीर्ण हो गई। मेघ की धारा से विकसित कदम्ब-पुष्प के समान उसका शरीर रोमाञ्चित हो गया (शरीर का रोम-रोम हर्ष से नाच उठा)। फिर वह श्रमण भगवान महावीर को अनिमेष दृष्टि से (टकटकी लगाकर) देखती रही। 13. After that Brahmani Devananda had a natural flow of milk in her breasts (by looking at Bhagavan Mahavir there was a spontaneous upsurge of motherly affection in her mind). Her eyes were filled with tears of joy. Her arms swelled due to excess of joy tightening her armlets. This upsurge of joy stretched her brassieres. Like the bloom on the flowers of Kadamb tree due to rain drops her body was thrilled (all bodyhair danced with joy). And she steadily stared at Bhagavan Mahavir without even a wink. १४. [प्र. ] 'भंते !' त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-किं णं भंते ! एसा देवाणंदा माहणी आगयपण्हया तं चेव जाव रोमकूवा देवाणुप्पियं अणिमिसाए दिट्ठीए देहमाणी देहमाणी चिट्ठइ ? [उ. ] 'गोयमा !' दि समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी-एवं खलु गोयमा ! देवाणंदा माहणी मम अम्मगा, अहं णं देवाणंदाए माहणीए अत्तए। तेणं एसा देवाणंदा माहणी तेणं पुव्वपुत्तसिणेहाणुरागेणं # आगयपण्हया जाव समूससियरोमकूवा ममं अणिमिसाए दिट्ठीए पेहमाणी पेहमाणी चिट्ठइ। 4545फफफफ़ 85555$$$$听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FFFFFFFFFFFF555555555 听听听听听听听听听听$$$$$$$ नवम शतक : तेतीसवाँ उद्देशक (439) Ninth Shatak : Thirty Third Lesson Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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