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ॐ देवानन्दा द्वारा दीक्षा ग्रहण INITIATION OF DEVANANDA ॐ १७. तए णं सा देवाणंदा माहणी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म सोच्चा निसम्म महतुट्ठा० समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिपयाहिणं जाव नमंसित्ता एवं वयासी-एवमेयं भंते! * तहमेयं भंते, एवं जहा उसभदत्तो (सु. १६) तहेव जाव धम्ममाइक्खियं।
१७. तदनन्तर श्रमण भगवान महावीर स्वामी से धर्म सुनकर एवं हृदयंगम करके वह देवानन्दा + ब्राह्मणी अत्यन्त हृष्ट एवं तुष्ट (आनन्दित एवं सन्तुष्ट) हुई और श्रमण भगवान महावीर की तीन बार
आदक्षिण-प्रदक्षिणा करके यावत् नमस्कार करके इस प्रकार बोली-भगवन् ! आपने जैसा कहा है, वैसा ही है, भगवन् ! आपका कथन यथार्थ है। इस प्रकार जैसे ऋषभदत्त ने (सू. १६ में) प्रव्रज्या ग्रहण करने के लिए निवेदन किया था, वैसे ही विरक्त देवानन्दा ने भी निवेदन किया; यावत् ‘धर्म कहा'; यहाँ तक कहना चाहिए।
17. Listening to and understanding the religious discourse given by 4 Bhagavan Mahavir, that Brahmani Devananda became happy, contented... and so on up to... her heart bloomed with bliss. She got up,
went around Shraman Bhagavan Mahavir three times clockwise ... and 4 so on up to... paid homage and obeisance and said — "Bhante! It is as
you say. Bhante! It is the ultimate reality.” This way, like Brahman 卐 Rishabh-datt had requested for initiation (Aphorism 16), detached ;
Brahmani Devananda too requested for initiation. ... and so on up to...
'gave the sermon'. म १८. तए णं समणे भगवं महावीरे देवाणंदं माहणिं सयमेव पवावेइ, सयमेव मुंडावेइ, सयमेव अज्जचंदणाए अज्जाए सीसिणित्ताए दलयइ।
१८. तब श्रमण भगवान महावीर स्वामी ने देवानन्दा ब्राह्मणी को स्वयमेव प्रव्रजित कराया, स्वयमेव मुण्डित कराया और स्वयमेव आर्यचन्दना आर्या को शिष्यारूप में सौंप दिया।
18. Then Shraman Bhagavan Mahavir himself got her initiated and tonsured and entrusted her as a disciple to Aryaa Chandana.
१९. तए णं सा अज्जचंदणा अज्जा देवाणंदं माहणिं सयमेव पव्वावेइ, सयमेव मुंडावेइ, सयमेव सेहावेइ, एवं जहेव उसभदत्तो तहेव अज्जचंदणाए अज्जाए इमं एयारूवं धम्मियं उवदेसं सम्मं संपडिवज्जइतमाणाए तहा गच्छइ जाव संजमेणं संजमइ।
१९. तत्पश्चात् आर्यचन्दना ने आर्या देवानन्दा ब्राह्मणी को स्वयं प्रव्रजित किया, स्वयमेव मुण्डित + किया और स्वयमेव उसे (संयम की) शिक्षा दी। देवानन्दा (नवदीक्षित साध्वी) ने भी ऋषभदत्त के समान ॥
इस प्रकार के धार्मिक (श्रमणधर्मपालन सम्बन्धी) उपदेश को सम्यक् रूप से स्वीकार किया और वह उनकी (आर्या चन्दनबाला की) आज्ञानुसार चलने लगी, यावत् संयम (-पालन) में सम्यक् प्रवृत्ति करने लगी। नवम शतक : तेतीसवाँ उद्देशक
(443) Ninth Shatak : Thirty Third Lesson
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