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की ध्वनि होती रहती थी, बत्तीस प्रकार के नाटकों के अभिनय और नृत्य होते रहते थे, अनेक प्रकार म की सुन्दर तरुणियों द्वारा नृत्य और गुणगान (गायन) बार-बार किये जाते थे, उसकी प्रशंसा से भवन :
गुंजायमान होता रहता था, खुशियाँ मनाई जाती रहती थीं, ऐसे वैभव व सुखमय उच्च श्रेष्ठ 5 卐 प्रासाद-भवन में प्रावृट् (पावस), वर्षा, शरद, हेमन्त, वसन्त और ग्रीष्म; इन छह ऋतुओं में आनन्द
(उत्सव) मनाता हुआ, समय बिताता हुआ, मनुष्य-सम्बन्धी पाँच प्रकार के इष्ट शब्द, स्पर्श, रस, रूप, ॐ गन्ध वाले कामभोगों का अनुभव करता हुआ रहता था।
22. In that Kshatriya Kundagram town lived a kshatriya (belonging to the warrior clans) youth named Jamali. He was very rich (aadhya), opulent (deept), famous ... and so on up to... insuperable (aparibhoot). In his towering mansion Mridangas (a type of drums) were played all the time; thirty-two varieties of dances and dramas were regularly performed; and many beautiful young damsels gave dance and music
performances from time to time. The building reverberated with eulogies 4 in his praise and celebrations of joy. He lived in such grand and i
comfortable, tall and exclusive mansion spending his time enjoying amply during all the six seasons, namely Pravrat (monsoon), Varsha (monsoon), Sharad (autumn), Hemant (cold), Vasant (spring) and Grishma (summer), and experiencing and enjoying five kinds of coveted pleasurable human experiences gained through the senses of hearing, touch, taste, appearance and smell.
विवेचन : क्षत्रियकुण्डपुर निवासी धनाढ्य क्षत्रियकुमार जमालि भगवान महावीर की बड़ी बहन सुदर्शना का पुत्र था। भगवान की पुत्री प्रियदर्शना के साथ उसका विवाह हुआ था। (आवश्यक मलयगिरि वृत्ति, पत्र ४०५) 4 Elaboration – Affluent Kshatriya young man Jamali of Kshatriya
Kundapur was the son of Sudarshana, the elder sister of Bhagavan Mahavir. He got married to Bhagavan's daughter Priyadarshana. (Malayagiri Commentary of Avashyak Sutra, leaf 405) दर्शन-वन्दनादि के लिए गमन GOING TO PAY HOMAGE
२३. तए णं खत्तियकुंडग्गामे नगरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर जाव बहुजणसद्दे इ वा जहा । उववाइए जाव एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ-एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे आइगरे जाव
सवण्णू सव्वदरिसी माहणकुंडग्गामस्स नगरस्स बहिया बहुसालए चेइए अहापडिरूवं जाव विहरइ। तं
महप्फलं खलु देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं जहा उववाइए जाव एगाभिमुहे म खत्तियकुंडग्गामं नगरं मझमज्झेणं निग्गच्छंति, निग्गच्छित्ता जेणेव माहणकुंडग्गामे नगरे जेणेव बहुसालए
चेइए एवं जहा उववाइए जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति।
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नवम शतक : तेतीसवाँ उद्देशक
( 445 )
Ninth Shatak : Thirty Third Lesson
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