Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 506
________________ B步步步步步步$$$$$$ $$$55555 bunches of a variety of gem-studded bells, and equipped with a yoke of best quality wood and two sets of quality bridle and reigns; and 451 harnessed to which are two fine young bullocks, which are fast and graceful and look-alike having similar hooves, tails and horns. They must have graceful gait and be embellished with golden ornaments, silver bells, golden nose-rope, and plume made of blue lotus. Follow this Si order and report me back.” ८. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा उसभदत्तेणं माहणेणं एवं वुत्ता समाणा हट्ट जाव हियया करयल० एवं वयासी-सामी ! 'तह' त्ताणाए विणएणं वयणं जाव पडिसुणेत्ता खिप्पामेव लहुकरणजुत्त० जाव धम्मियं जाणप्पवरं जुत्तामेव उवट्ठवेत्ता जाव तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति। ८. जब ऋषभदत्त ब्राह्मण ने उन कौटम्बिक पुरुषों को इस प्रकार कहा, तब वे उसे सुनकर अत्यन्त : है हर्षित यावत् हृदय में आनन्दित हुए और मस्तक पर अंजलि करके इस प्रकार कहा- “स्वामिन् ! आपकी यह आज्ञा हमें मान्य है''। ऐसा कहकर विनयपूर्वक उनके वचनों को स्वीकार किया और (ऋषभदत्त की आज्ञानुसार) शीघ्र ही द्रुतगामी दो बैलों से युक्त यावत् श्रेष्ठ धार्मिक रथ को तैयार करके उपस्थित किया; यावत् उनकी आज्ञा के पालन की सूचना दी। 8. When Brahman Rishabh-datt said thus to his attendants they were very happy ... and so on up to... filled with joy and raising their joined palms to their heads they said – “Sir! We will do as you say.” 1 With these words they humbly accepted the order and soon prepared and brought the best religious carriage ... and so on up to... reported about completion of the mission. ९. तए णं से उसभदत्ते माहणे पहाए जाव अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, साओ गिहाओ पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे । तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढे। ९. तदनन्तर वह ऋषभदत्त ब्राह्मण स्नान यावत् अल्प भार (कम वजन के) और महामूल्य वाले आभूषणों से अपने शरीर को अलंकृत किये हुए अपने घर से बाहर निकला। घर से बाहर निकलकर जहाँ बाहरी उपस्थानशाला थी और जहाँ श्रेष्ठ धार्मिक रथ था, वहाँ आया। आकर उस रथ पर आरूढ़ हुआ। 9. After that Brahman Rishabh-datt took his bath ... and so on up to... adorned his body with ornaments that were light in weight and high in value. He then came out of his residence, proceeded to the outer courtyard where the carriage was parked. He then boarded the carriage. 卐555555)))))))))))))))))))55555555555555555555558 נ ת ת ובובוב ובום ת ת ת ת ת ת ת भगवती सूत्र (३) (436) Bhagavati Sutra (3) 因步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步为%%%B Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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