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५१. [प्र. २ ] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि नैरयिक सत् नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं,
असत् नैरयिकों में नहीं। इसी प्रकार यावत् सत् वैमानिकों में से च्यवते हैं, असत् वैमानिकों में से नहीं? 5 [उ. ] गांगेय ! निश्चित ही पुरुषादानीय अरह (अर्हन्) श्री पार्श्वनाथ ने लोक को शाश्वत, अनादिक * और अनन्त कहा है इत्यादि, पंचम शतक के नौवें उद्देशक में कहे अनुसार जानना चाहिए, यावत् जो म अवलोकन किया जाए, उसे लोक कहते हैं। इस कारण, हे गांगेय ! ऐसा कहा जाता है कि यावत् सत्
वैमानिकों में से च्यवते हैं, असत् वैमानिकों में से नहीं। $ 51. [Q. 2] Bhante ! Why is it said that infernal beings are born among fi the existent infernal beings and not among the non-existent infernal fi beings... and so on up to... Vaimanik gods descend from among the
existent Vaimanik gods and not from among the non-existent Vaimanik gods? । [Ans.] Gangeya ! Arhat Parshva, the best among men F (Purushadaniya) has called the Lok (occupied space or universe) eternal, Fi without a beginning and without an end... (quote from the ninth lesson Hof the fifth chapter) ... and so on up to... what is visible is the Lok. That is
the reason, Gangeya ! it said ... and so on up to... Vaimanik gods descend from among the existent Vaimanik gods and not from among the non
existent Vaimanik gods. । विवेचन : सत् ही उत्पन्न होने आदि का रहस्य-सत् अर्थात द्रव्यार्थतया विद्यमान नैरयिक आदि ही नैरयिक
आदि में उत्पन्न होते हैं, सर्वथा असत् (अविद्यमान) द्रव्य तो कोई भी उत्पन्न नहीं होता, क्योंकि वह तो गधे के सींग के समान असत् है। इन जीवों में सत्त्व (विद्यमानत्व या अस्तित्व) जीवद्रव्य की अपेक्षा से, अथवा नारक-पर्याय की अपेक्षा से समझना चाहिए, क्योंकि भावी नारक-पर्याय की अपेक्षा से द्रव्यतः नारक ही नारकों में उत्पन्न होते हैं। अथवा यहाँ से मरकर नरक में जाते समय विग्रहगति में नरकायु का उदय हो जाने से वे जीव भावनारक होकर ही नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं। ___Elaboration-Explanation of why only existent is born - Only
those infernal and other beings that are existent (sat) from dravyarthik 5 naya (existent material aspect) get born in different respective genuses. i No non-existent (in the form under consideration) entity ever takes birth because that is unreal like chimera. Here the existence of these souls is
in context of the soul entity as well as the infernal mode. This is because i in terms of future mode as infernal beings only infernal beings are born
in that realm. Even those souls that end their lives in some other genus and are destined to be born in the infernal realm turn to the infernal state during their passage to infernal realm. Thus they also satisfy the aforesaid theory.
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नवम शतक : बत्तीसवाँ उद्देशक
(425)
Ninth Shatak : Thirty Second Lesson
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