Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 498
________________ 听听FFFFFFFFFFFFFFFFF听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 ज ५७. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारा। से तेणद्वेणं गंगेया ! एवं वुच्चइ-सयं 卐 वेमाणिया जाव उववज्जंति, नो असयं जाव उववति। ५७. जिस प्रकार असुरकुमारों के विषय में कहा, उसी प्रकार वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और ॐ वैमानिकों के विषय में भी जानना चाहिए। इसी कारण से, हे गांगेय ! मैं ऐसा कहता हूँ कि यावत् ॐ वैमानिक, वैमानिकों में स्वयं उत्पन्न होते हैं, अस्वयं नहीं होते। 57. Vanavyantar, Jyotishk and Vaimanik gods follow the pattern of Asur Kumar gods. That is why, Gangeya ! I say that ... and so on up to... 4 Vaimanik gods get born among infernal beings of their own accord and ॐ not otherwise. म विवेचन : जीवों की नारक, देव आदि रूप में स्वयं उत्पत्ति के कारण-(१) कर्मोदयवश, (२) कर्मों की गुरुता से, (३) कर्मों के भारीपन से. (४) कर्मों के गरुत्व और भारीपन की अतिप्रकर्षावस्था से, (५) कर्मों के उदय से, + (६) विपाक से (यानी कर्गों के फलभोग से), अथवा यथाबद्ध रसानुभूति से, फलविपाक से रस की प्रकर्षता से। ॐ उपर्युक्त शब्दों में किञ्चित् अर्थभेद है अथवा ये शब्द एकार्थक हैं। अर्थ के प्रकर्ष को बतलाने के लिए । 卐 अनेक शब्दों का प्रयोग किया गया है। Elaboration-Cause of birth of living beings of their own accord - (1) due to fruition of karmas (karmodaya), (2) due to magnitude of karmas (karma guruta), (3) due to mass of karmas (karma sambhaar), (4) due to excessive magnitude and mass of karmas, (5) due to fruition of karmas, (6) due to consequence of karmas (vipaak) and (7) due to 卐 maturing of fruits or intensity of karmas (karma phal-vipaak). All these terms could be called synonymous as they have only slight differences in their meanings. This variety of words has been used to elaborate the range of meanings the concept covers. भगवान के सर्वज्ञत्व पर श्रद्धा और पंचमहाव्रत धर्म-स्वीकार BELIEF IN OMNISCIENCE AND EMBRACING OF THE FIVE-VOW PATH ५८. तप्पभिई च णं से गंगेये अणगारे समणं भगवं महावीरं पच्चभिजाणइ सव्वण्णू सव्वदरिसी। ५८. तब से अर्थात् इन प्रश्नोत्तरों के समय से गांगेय अनगार ने श्रमण भगवान महावीर को सर्वज्ञ ॐ और सर्वदर्शी के रूप में पहचाना। 41 58. Since this moment of dialogue) ascetic Gangeya recognized Shraman Bhagavan Mahavir as all knowing and all seeing (omniscient). ॐ ५९. तए णं से गंगेये अणगारे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणयपाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ ॐ नमंसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामि णं भंते ! तुभं अंतियं चाउज्जामाओ धम्माओ पंचमहब्बइयं एवं जहा कालासवेसियपुत्तो (स. १, उ. ९, सु. २३-२४) तहेव भाणियव्वं जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। 卐 सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०। ॥ नवम सए: बत्तीसइमो उद्देसओ समत्तो॥ भगवती सूत्र (३) (430) Bhagavati Sutra (3) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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