Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 500
________________ 255 5555555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 55 55555555 फ्र नवम शतक : तेतीसवाँ उद्देशक : कुण्डग्राम (ऋषभदत्त और देवानन्दा) NAVAM SHATAK (Chapter Ninth) : THIRTY-THIRD LESSON : KUNDAGRAM [Rishabh-datt and Devananda] तेत्तीसइमो उद्देसो : 'कुंडग्गामे' संक्षिप्त परिचय BRIEF INTRODUCTION १. तेणं कालेणं तेणं समएणं माहणकुंडग्गामे नयरे होत्था । वण्णओ । बहुसालए चेतिए । वण्णओ। १. उस काल और उस समय में ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर था । उसका वर्णन नगर - वर्णन के समान समझ लेना चाहिए। वहाँ बहुशाल नामक चैत्य (उद्यान) था। उसका वर्णन भी (औपपातिकसूत्र से) करना चाहिए। 1. During that period of time there was a city called Brahman Kundagram. Description (as in Aupapatik sutra ). Outside the city there ! was a Chaitya called Bahushal. Description (as in Aupapatik sutra). २. तत्थ णं माहणकुंडग्गामे नयरे उसभदत्ते नामं माहणे परिवसति-अड्डे दित्ते वित्ते जाव अपरिभू । रिउवेद - जजुवेद - सामवेद - अथव्वणवेद जहा खंदओ (स. २, उ. १, सु. १२) जाव अन्नेसु य बहुसु 5 बंभण्णएसु नएसु सुपरिनिट्ठिए समणोवासए अभिगयजीवाजीवे उवलद्वपुण्ण - पावे जाव अप्पाणं भावेमाणे L विहरति । 卐 卐 २. उस ब्राह्मणकुण्डग्राम नगर में ऋषभदत्त नाम का ब्राह्मण रहता था । वह आढ्य ( धनवान् ), दीप्त (तेजस्वी), प्रसिद्ध, यावत् अपरिभूत था । वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में निपुण था । ( शतक २, उद्देशक १, सू. १२ में कथित ) स्कन्दक तापस की तरह वह भी ब्राह्मणों के अन्य बहुत से H नयों (शास्त्रों) में निष्णात विशेषज्ञ था। वह श्रमणों का उपासक, जीव-अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता, ५ पुण्य-पाप के तत्त्व को उपलब्ध (हृदयंगम किया हुआ), यावत् आत्मा को भावित करता हुआ विहरण फ ( जीवन-यापन) करता था। ५ Y 4 卐 2. In that Brahman Kundagram lived a Brahmin named Rishabhdatt. He was very rich ( aadhya), opulent (deept), famous... and so on up y to... insuperable (aparibhoot). He was an expert of four Vedas namely y 5 Rigveda, Yajurveda, Saam-veda, Atharvaveda. Like Skandak Tapas he was a scholar of many other Brahmin scriptures (Bhagavati Sutra, Vol. 1, 2/1/12). He was a devotee of Shramans, understood the fundamental 卐 entities including soul and matter, and very much aware of the basics 4 about virtues and vices... and so on up to... He spent his life enkindling फ (bhaavit) his soul (with ascetic religion and austerities). भगवती सूत्र (३) Jain Education International (432) ததததததத******************தமிமிமிமிமிதகதியி Bhagavati Sutra (3) For Private & Personal Use Only फ्र www.jainelibrary.org

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