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३१. [ प्र. ] ते णं भंते! एगसमएणं केवतिया होज्जा ?
[ उ. ] गोयमा ! जहन्त्रेणं एक्को वा दो वा तिन्निवा, उक्कोसेणं दस से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ 'असोच्चा णं केवलिस्स वा जाव अत्थेगइए केवलिपण्णत्तं धम्मं लभेज्जा सवणयाए, अत्थेगइए असोच्चा णं केवलि जाव नो लभेज्जा सवणयाए जाव अत्थेगइए केवलनाणं उप्पाडेज्जा, अत्थेगइए केवलनाणं नो उप्पाडेज्जा ।
३१. [ प्र. ] भगवन् ! वे असोच्चा केवली एक समय में कितने होते हैं ?
[उ. ] गौतम ! वे जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट दस होते हैं।
31. [Q.] Bhante ! How many of them exist at a given moment of time ? [Ans.] Gautam ! A minimum of one, two or three and a maximum of
ten.
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[ उपसंहार - ] इसलिए हे गौतम! मैं ऐसा कहता हूँ कि केवली यावत् केवलि - पाक्षिक की उपासिका से धर्मश्रवण किये बिना ही किसी जीव को केवलि-प्ररूपित धर्मश्रवण प्राप्त होता है और किसी को नहीं होता; यावत् कोई जीव केवलज्ञान उत्पन्न कर लेता है और कोई जीव केवलज्ञान उत्पन्न नहीं कर पाता । (Concluding statement) That is why, Gautam! I say that even without hearing (the sermon ) from the omniscient ... and so on up to... or his (self-enlightened omniscient's) female devotee (upaasika) some jiva (living being) may and some other may not derive the benefits of hearing the sermon of an omniscient ... and so on up to... some jiva (living being) may and some other may not acquire Keval-jnana (omniscience).
विवेचन : विशेषार्थ-आघवेज्ज-शिष्यों को शास्त्र का अर्थ ग्रहण कराते हैं, अथवा अर्थ-प्रतिपादन करके सत्कार प्राप्त कराते हैं। पत्रवेज्ज-भेद बताकर या भिन्न-भिन्न करके समझाते हैं । परूवेज्ज - उपपत्तिकथनपूर्वक प्ररूपण करते हैं । पव्वावेज्ज मुंडावेज्ज- रजोहरण आदि द्रव्यवेश देकर प्रव्रजित (दीक्षित) करते हैं, मस्तक का लोच करके मुण्डित करते हैं । उवएसं पुण करेज्ज-किसी दीक्षार्थी के उपस्थित होने पर 'अमुक के पास दीक्षा लो' केवल इतना --सा उपदेश करते हैं । सद्दावइ इत्यादि पदों का आशय - शब्दापाती, विकटापाती गन्धापाती और माल्यवन्त; ये स्थान जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के अनुसार क्षेत्रसमास के अभिप्राय से क्रमश: हैमवत, ऐरण्यवत, हरिवर्ष और रम्यक्वर्ष क्षेत्र में हैं । ( वृत्ति, पत्र ४३६)
Elaboration-Technical terms-Aaghvejj-to explain the meaning of scriptures to disciples or get honoured by explaining the meanng. Pannavejj-to explain by showing the differences or explain by splitting. Paruvejj-to authenticate with the help of etymology. Pavvavejj-to initiate by giving the ascetic garb and equipment. Mundavejj-to tonsure by pulling out hair. Uvaesam puna karejjwhen some aspirant approaches for initiation they just direct him by भगवती सूत्र (३)
Bhagavati Sutra (3)
(342)
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