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4 (Sharkaraprabha Prithvi), one in the third hell (Baluka prabha Prithvi)
... and so on up to... one in the seventh hell (Adhah-saptam Prithvi). 455 5005.
विवेचन : नौ नैरयिकों के नरक-प्रवेशनक के एकसंयोगी (असंयोगी) ७ भंग, द्विकसंयोगी १६८. त्रिकसंयोगी ९८०, चतुष्कसंयोगी १९६०, पंचसंयोगी १४७०, षट्संयोगी ३९२ और सप्तसंयोगी २८ भंग; ये ॥ सब मिलाकर ५००५ भंग हुए।
Elaboration—The total number of alternative combinations related to nine infernal beings are-7 options for no alternative combination of $ seven, 168 options for alternative combination of 2, 980 options for alternative combination of 3, 1960 options for alternative combination of 4, 1470 options for alternative combination of 5, 392 options for alternative combination of 6 and 28 options for the combination of 7, 41 making a total of 5005 options. दस नैरयिकों के प्रवेशनक भंग ALTERNATIVES FOR TEN INFERNAL BEING
२५. [प्र. ] दस भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा० ? पुच्छा। [उ. ] गंगेया ! रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा ७।
अहवा १ + ९ एगे रयणप्पभाए, नव सक्करप्पभाए होज्जा। एवं दुयासंजोगो जाव सत्तसंजोगो य जहा नवण्हं, नवरं एक्केक्को अब्भहिओ संचारेयवो। सेसं तं चेव। अपच्छिमआलावगो-अहवा ४ + १ +१+१+१+१+१, चत्तारि रयण०, एगे सक्करप्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा। ८००८।
२५. [प्र. ] भगवन् ! दस नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में होते हैं ? इत्यादि (पूर्ववत्) प्रश्न।
[उ. ] गांगेय ! वे दस नैरयिक जीव, रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। ___ अथवा एक रत्नप्रभा में और नौ शर्कराप्रभा में होते हैं; इत्यादि। जिस प्रकार नौ नैरयिक जीवों के द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी, चतुःसंयोगी, पंचसंयोगी, षट्संयोगी एवं सप्तसंयोगी भंग कहे गये हैं, उसी प्रकार दस नैरयिक जीवों के भी (द्विकसंयोगी यावत् सप्तसंयोगी) कहने चाहिए। विशेष यह है कि यहाँ
एक-एक नैरयिक का अधिक संचार करना चाहिए, शेष सभी भंग पूर्ववत् जानने चाहिए। उनका ___ अन्तिम आलापक (भंग) इस प्रकार है-अथवा चार रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में यावत् एक अधः सप्तम-पृथ्वी में होता है। ८००८।
25. (Q.) Bhante ! When ten jivas (souls) enter the infernal realm do 45 they get born in the first hell (Ratnaprabha Prithvi) or the second hell 4 (Sharkaraprabha Prithvi) or ... and so on up to... the seventh hell i (Adhah-saptam Prithvi) ?
9555555555555555555555555555
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| नवम शतक : बत्तीसों उद्देशक
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Ninth Shatak : Thirty Second Lesson
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