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(ख) अहवा रयणप्पभाए य सक्करप्पभाए य वालुयप्पभाए य होज्जा। एवं जाव अहवा रयण, सक्करप्पभाए य अहेसत्तमाए य होज्जा ५। अहवा रयण०, वालुय०, पंकप्पभाए य होज्जा; जाव अहवा, रयण०, वालुय०, अहेसत्तमाए य होज्जा ४। अहवा रयण०, पंकप्पभाए य, धूमाए य होज्जा। एवं रयणप्पभं अमुयंतेसु जहा तिण्हं तियासंजोगो भणिओ तहा भाणियव्वं जाव अहवा रयण०, तमाए य, अहेसत्तमाए य होज्जा १५।
(ग) अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, वालुय०, पंकप्पभाए य होज्जा। अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, वालुय०, धूमप्पभाए य होज्जा; जाव अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, वालुय०, अहेसत्तमाए य होज्जा ४। अहवा रयण०, सक्कर०, पंक०, धूमप्पभाए य होजा। एवं रयणप्पभं अमुयंतेसु जहा चउण्हं चउक्कसंजोगो तहा भाणियबं जाव अहवा रयण०, धूम०, तमाए, अहेसत्तमाए होज्जा २०।
(घ) अहवा रयण०, सक्कर०, वालुय०, पंक०, धूमप्पभाए य होज्जा १। अहवा रयणप्पभाए जाव पंक०, तमाए य होज्जा २। अहवा रयण० जाव पंक०, अहेसत्तमाए य होज्जा ३। अहवा रयण, सक्कर०, वालुय०, धूम०, तमाए य होज्जा ४ । एवं रयणप्पभं अमुयंतेसु जहा पंचण्हं पंचकसंजोगो तहा भाणियब्वं जाव अहवा रयण०, पंकप्पभा, जाव अहेसमाए होज्जा १५।
(च) अहवा रयण०, सक्कर०, जाव धूमप्पभाए, तमाए य होज्जा १। अहवा रयण०, जाव धूम०, अहेसत्तमाए य होज्जा २। अहवा रयण०, सक्कर०, जाव पंक०, तमाए य, अहेसत्तमाए य होज्जा ३। अहवा रयण०, सक्कर०, वालुय०, धूमप्पभाए, तमाए, अहेसत्तमाए होज्जा ४। अहवा रयण०, सक्कर०, पंक० जाव अहेसत्तमाए य होज्जा ५। अहवा रयण०, वालुय०, जाव अहेसत्तमाए होज्जा ६।
(छ) अहवा रयणप्पभाए य, सक्कर०, जाव अहेसत्तमाए होज्जा १।
२८. [प्र. ] भगवन् ! नैरयिक जीव नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए उत्कृष्ट पद में क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[उ. ] गांगेय ! उत्कृष्ट पद में सभी नैरयिक रत्नप्रभा में होते हैं। (क) (द्विकसंयोगी ६ भंग-) (१) अथवा रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा में होते हैं। (२) अथवा रत्नप्रभा और बालुकाप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् (३-६) रत्नप्रभा और अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं।
(ख) (त्रिकसंयोगी १५ भंग-) (१) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा में होते हैं। इसके प्रकार यावत् (२-५) रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। (६) अथवा रत्नप्रभा, बालुकाप्रभा और पंकप्रभा में होते हैं। यावत् (७-९) अथवा रत्नप्रभा, बालुकाप्रभा और अधः सप्तम-पृथ्वी में होते हैं। (१०) अथवा रत्नप्रभा, पंकप्रभा और धूमप्रभा में होते हैं। जिस प्रकार रत्नप्रभा को न छोड़ते हुए तीन नैरयिक जीवों के त्रिकसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। यावत् (१५) अथवा रत्नप्रभा, तमःप्रभा और अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं।
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नवम शतक : बत्तीसवाँ उद्देशक
(405)
Ninth Shatak : Thirty Second Lesson
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