________________
)))))))555555558
ICIPIE LIPI IFIFIPIP
1955555555) ))))))) )) )))))) i (Ratnaprabha Prithvi), countable in the second hell (Sharkaraprabha
Prithvi) and countable (sankhyat) in the seventh hell (Adhah-saptam i Prithvi). (3337)
विवेचन : संख्यात का स्वरूप-आगमिक यहाँ ग्यारह से लेकर शीर्षप्रहेलिका तक की संख्या को संख्यात कहा गया है।
असंयोगी ७ भंग, द्विकसंयोगी २३१ भंग, त्रिकसंयोगी ७३५ भंग, चतुःसंयोगी १०८५ भंग, पंचसंयोगी ८६१ भंग, षट्संयोगी ३५७ भंग, सप्तसंयोगी ६१ भंग पूर्वोक्त रीति से समझने चाहिए। इस प्रकार संख्यात नैरयिक जीवों आश्रयी ७ + २३१ + ७३५ + १०८५ + ८६१ + ३५७ + ६१ = ३३३७ कुल भंग होते हैं। (भगवती. विवेचनयुक्त [पं. घेवरचन्दजी], भा. ४, पृ. १६६०-१६६१)
Elaboration—Sankhyat-It is the general term covering all numbers from starting from eleven to Sheershaprahelika (10257). i The total number of alternative combinations related to countable i infernal beings are—7 options for no alternative combination of seven,
231 options for alternative combination of 2, 735 options for alternative combination of 3, 1085 options for alternative combination of 4, 861 options for alternative combination of 5, 357 options for alternative
combination of 6 and 61 options for the combination of 7, making a total 3 of 7+231+735+1085+861+357+61 = 3337 options related to countable i infernal beings. (Bhagavati Sutra with elaboration by Pt. Ghevar Chand iji, part-4, pp. 1660-1661) असंख्यात नैरयिकों के प्रवेशनक भंग ALTERNATIVES FOR INNUMERABLE INFERNAL BEING
२७. [प्र. ] असंखेज्जा भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणएणं० ? पुच्छा। _[उ. ] गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा ७। i अहवा एगे रयण०, असंखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा। एवं दुयासंजोगो जाव सत्तगसंजोगो य जहा
संखेज्जाणं भणिओ तहा असंखेज्जाण वि भाणियव्बो, नवरं असंखेज्जाओ अब्भहिओ भाणियव्यो, सेसं तं । चेव जाव सत्तगसंजोगस्स पच्छिमो आलावगो-अहवा असंखेज्जा रयण० असंखेज्जा सक्कर० जाव असंखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा।
२७. [प्र. ] भगवन् ! असंख्यात नैरयिक, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हैं ? इत्यादि प्रश्न। __ [उ. ] गांगेय ! वे रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं, अथवा एक रत्नप्रभा में और असंख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं। ____ जिस प्रकार संख्यात नैरयिकों के द्विकसंयोगी यावत् सप्तसंयोगी भंग कहे, उसी प्रकार असंख्यात के म भी कहना चाहिए। परन्तु इतना विशेष है कि यहाँ ‘असंख्यात' यह पद कहना चाहिए। (अर्थात् बारहवाँ असंख्यात पद कहना चाहिए।) शेष सभी पूर्वोक्त प्रकार से जानना चाहिए। यावत् अन्तिम आलापक यह है -अथवा असंख्यात रत्नप्रभा में, असंख्यात शर्कराप्रभा में यावत् असंख्यात अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। के नवम शतक : बत्तीसवाँ उद्देशक
(403)
Ninth Shatak: Thirty Second Lesson
))
卐)))))))))))))))))))
15步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步园
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org