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[ उ. ] गांगेय ! सबसे अल्प अधः सप्तम - पृथ्वी के नैरयिक- प्रवेशनक हैं, उनसे तमः प्रभा - पृथ्वी 5 नैरयिक- प्रवेशनक असंख्यातगुण हैं। इस प्रकार उल्टे क्रम से, यावत् रत्नप्रभा - पृथ्वी नैरयिक- प्रवेशनक असंख्यातगुण हैं।
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[Ans.] Gangeya ! Minimum are entries (praveshanak) into the 5 seventh hell (Adhah-saptam Prithvi), innumerable times more than these are those into the sixth hell (Tamah-prabha Prithvi) ... and so on up to... (descending order) the first hell (Ratnaprabha Prithvi). 5 तिर्यञ्चयोनिक- प्रवेशनक प्रकार और भंग
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29. [Q.] Bhante ! Of the (aforesaid ) entries (praveshanak) into the first hell (Ratnaprabha Prithvi), the second hell (Sharkaraprabha Prithvi), फ and so on up to... the seventh hell (Adhah-saptam Prithvi), which of the 5 entries are comparatively less, more, equal and much more?
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TIRYANCH-YONIK-PRAVESHANAK-TYPES AND ALTERNATIVES
30. [Q.] Bhante ! How many types of Tiryanch-yonik-praveshanak फ ( entrance into animal genus) are there ?
३०. [ प्र. ] भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक - प्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ?
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[ उ. ] गांगेय ! वह पाँच प्रकार का कहा गया है । यथा - एकेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक - प्रवेशनक यावत् 5 पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक- प्रवेशनक ।
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३०. [ प्र. ] तिरिक्खजोणियपवेसणए णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?
[उ.] गंगेया ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा - एगिंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए जाव 5 पंचेंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए ।
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३१. [ प्र. ] एगे भंते ! तिरिक्खजोणिए तिरिक्खजोणियपवेसणएणं पविसमाणे किं एगिदिए
5 होज्जा जाव पंचिंदिएसु होज्जा ?
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[Ans.] Gangeya ! Tiryanch-yonik-praveshanak ( entrance into animal f genus) are said to be of five types Ekendriya Tiryanch-yonik- फ praveshanak (entrance into the one-sensed animal genus), ... and so on up to... Panchendriya Tiryanch-yonik-praveshanak ( entrance into the five-sensed animal genus).
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[उ. ] गंगेया ! एगिंदिएसु वा होज्जा जाव पंचिंदिएसु वा होज्जा ।
३१ . [ प्र. ] भगवन् ! एक तिर्यञ्चयोनिक जीव, तिर्यञ्चयोनिक - प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करता हुआ
क्या एकेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है अथवा यावत् पंचेन्द्रिय जीवों में उत्पन्न होता है ?
[उ.] गांगेय ! एक तिर्यञ्चयोनिक जीव, एकेन्द्रिय में होता है, अथवा यावत् पंचेन्द्रियों में उत्पन्न होता है।
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भगवती सूत्र ( ३ )
(410)
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Bhagavati Sutra (3)
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