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म १९. [प्र. ] भगवन् ! नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए चार नैरयिक जीव क्या रत्नप्रभा ॥ 1 में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। म [उ. ] गांगेय ! वे चार नैरयिक जीव रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तम-पृथ्वी में होते ॥ - हैं। (इस प्रकार असंयोगी सात विकल्प और सात ही भंग होते हैं।)
19. [Q.JBhante ! When four jivas (souls) enter the infernal realm do 卐 they get born in the first hell (Ratnaprabha Prithvi) or the second hell 卐
(Sharkaraprabha Prithvi) or ... and so on up to... the seventh hell (Adhah-saptam Prithvi)?
(Ans.] Gangeya ! All the four together get born either in the first hell 卐 (Ratnaprabha Prithvi) or in any other ... and so on up to... the seventh
hell (Adhah-saptam Prithvi). This way the number of alternative combinations for all four souls as individuals (no set-related alternative
combination) are seven. 卐 द्विकसंयोगी ६३ भंग 63 OPTIONS FOR SETS OF TWO
१९. (क) अहवा एगे रयणप्पभाए, तिण्णि सक्करप्पभाए होज्जा १। अहवा एगे रयणप्पभाए, + तिण्णि वालुयप्पभाए होज्जा २। एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, तिण्णि अहेसत्तभाए होज्जा ३-६। के अहवा दो रयणप्पभाए, दो सक्करप्पभाए होज्जा १, एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए, दो अहेसत्तमाए 卐 होज्जा २-६ = १२।
अहवा तिण्णि रयणप्पभाए एगे सक्करप्पभाए होज्जा १। एवं जाव अहवा तिण्णि रयणप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा २-६ = १५। ॐ अहवा एगे सक्करप्पभाए, तिण्णि वालुयप्पभाए होज्जा १, एवं जहेव रयणप्पभाए उवरिमाहिं समं
चारियं तहा सक्करप्पभाए वि उवरिमाहिं समं चारियव्वं २-१५ = ३३ । ___ एवं एक्केक्काए समं चारेयव्वं जाव अहवा तिण्णि तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा १५-१५ = ६३।
१९. (क) (द्विकसंयोगी तिरेसठ भंग)-(१) अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा में होते हैं; (२) अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन बालुकाप्रभा में होते हैं; (३-४-५-६) इसी प्रकार यावत् + अथवा एक रत्नप्रभा में और तीन अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। (इस प्रकार रत्नप्रभा के साथ १-३ के ॐ ६ भंग होते हैं।) (७) अथवा दो रत्नप्रभा में और दो शर्कराप्रभा में होते हैं; (८-९-१०-११-१२) + इसी प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में और दो अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। (यों रत्नप्रभा के साथ
२-२ के छह भंग होते हैं।) । म (१३) अथवा तीन रत्नप्रभा में और एक शर्कराप्रभा में होता है; (१४-१८) इसी प्रकार यावत्
अथवा तीन रत्नप्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। (इस प्रकार रत्नप्रभा के साथ ३-१ के ॐ ६ भंग होते हैं। यों रत्नप्रभा के साथ कुल भंग ६ + ६ + ६ = १८ हुए।)
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| भगवती सूत्र (३)
(368)
Bhagavati Sutra (3) |
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