Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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बालुकाप्रभा में और एक धूमप्रभा में होता है। (३) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक
बालुकाप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है। (४) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक 5 बालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। (ये चार भंग हुए।) (१) अथवा एक रत्नप्रभा में,
एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में होता है। (२) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक
शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है। (३) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक , शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। (इस प्रकार ये तीन भंग हुए।)
(१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है। (२) # अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। । (इस प्रकार ये दो भंग हुए।) (१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक तमःप्रभा में और
एक अध:सप्तम-पृथ्वी में होता है। (यह एक भंग हआ।) (१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक धमप्रभा में होता है। (२) अथवा एक रत्नप्रभा में एक बालकाप्रभा में. एक पंकप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है। (३) अथवा एक रत्नप्रभा में एक बालकाप्रभा में. एक पंकप्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। (ये तीन भंग हुए।) (१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है। (२) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। (ये दो भंग हुए।) (१) अथवा # एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। (यह । एक भंग हुआ।) (१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में । होता है। (२) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में
होता है। (ये दो भंग होते हैं।) (१) अथवा एक रत्नप्रभा में एक पंकप्रभा में एक तमःप्र । अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। (यह एक भंग) (१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक धूमप्रभा में एक तमः
प्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। (यह एक भंग हुआ। इस प्रकार रत्नप्रभा के संयोग वाले । ४ + ३ + २ + १, + ३ + २ + १, + २ + १ + १ = २० भंग होते हैं।) (१) अथवा एक शर्कराप्रभा । में, एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में और एक धूमप्रभा में होता है। जिस प्रकार रत्नप्रभा का उससे
आगे की पृथ्वियों के साथ संचार (योग) किया, उसी प्रकार शर्कराप्रभा का उससे आगे की पृथ्वियों के । साथ योग करना चाहिए। यावत् अथवा एक शर्कराप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक 5
अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। (इस प्रकार शर्कराप्रभा के संयोग वाले १० भंग होते हैं।) (१) अथवा । एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक तमःप्रभा में होता है। (२) अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। (३) अथवा
एक बालुकाप्रभा में, एक पंकप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। (इस म तरह बालुकाप्रभा के संयोग वाले ४ भंग हुए।) (१) अथवा एक बालुकाप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक
तमःप्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है अथवा एक पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमः % प्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। इस प्रकार सब मिलकर चतुःसंयोगी भंग २० + १० + , ४ + १ = ३५ होते हैं।
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manamananागाना
| नवम शतक : बत्तीसवाँ उद्देशक
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Ninth Shatak : Thirty Second Lesson
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