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\ Prithvi), one in the second hell (Sharkaraprabha Prithvi), one in the y
fourth hell (Pankaprabha Prithvi) ... and so on up to... one in the seventh hell (Adhah-saptam Prithvi). Or (6) one in the first hell
(Ratnaprabha Prithvi), one in the third hell (Balukaprabha Prithvi) ... 卐 and so on up to... one in the seventh hell (Adhah-saptam Prithvi). Or (7) 1 one in the second hell (Sharkaraprabha Prithvi), one in the third hell (Balukaprabha Prithvi) ... and so on up to... one in the seventh hell k
(Adhah-saptam Prithvi). ॐ विवेचन : इस प्रकार ६ नैरयिक जीवों के असंयोगी ७ भंग, द्विकसंयोगी १०५, त्रिकसंयोगी ३५०, ,
चतुष्कसंयोगी ३५०, पंचसंयोगी १०५ और षट्संयोगी ७; ये सब मिलकर ९२४ प्रवेशनक भंग होते हैं। (विस्तार से समझने के लिए व्याख्या., भाग २, पृ. ४७९ देखें)
Elaboration-Thus the total number of alternative combinations related to six infernal beings becomes - 7 options for no alternative combination of six, 105 options for alternative combination of 2, 350 options for alternative combination of 3, 350 options for alternative combination of 4, 105 options for alternative combination of 5 and 7 options for alternative combination of 6, making a total of 7+105+350+350+105+7 = 924 alternatives. (Vyakhyaprajnapti Sutra, part-2, p. 479) सात नैरयिकों के प्रवेशनक भंग ALTERNATIVES FOR SEVEN INFERNAL BEING
२२. [प्र. ] सत्त भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा० ? पुच्छा। ___[उ. ] गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा ७।
(क) अहवा एगे रयणप्पभाए, छ सक्करप्पभाए होज्जा, एवं एएणं कमेणं जहा छण्हं दुयासंजोगो तहा सत्तण्ह वि भावियव्वं नवरं एगो अब्भहिओ संचारिज्जइ। सेसं तं चेव।
तियासंजोगो, चउक्कसंजोगो, पंचसंजोगो, छक्कसंजोगो य छण्हं जहा तहा सत्तण्ह वि भाणियब्वो, नवरं एक्केको अब्भहिओ संचारेयव्यो जाव छक्कगसंजोगो। अहवा दो सक्कर० एगे वालुय० जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा।
(ख) अहवा एगे रयण०, एगे सक्कर० जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा १ । १७१६।
२२. [प्र. ] (एकसंयोगी ७ भंग-) भगवन् ! सात नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा-पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[उ. ] गांगेय ! वे सातों नैरयिक रत्नप्रभा में होते हैं, यावत् अथवा अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। 卐 (इस प्रकार असंयोगी ७ भंग होते हैं।)
भगवती सूत्र (३)
(392)
Bhagavati Sutra (3)
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