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४४. [ प्र. ] भगवन् ! वे सोच्चाकेवली एक समय में कितने होते हैं ? [उ. ] गौतम ! वे एक समय में जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट एक सौ आठ होते हैं। 44.1Q.JBhante ! How many of them exist at a given moment of time ? ।
|Ans.] Gautam ! A minimum of one, two or three and a maximum of one hundred and eight.
[उपसंहार-] इसीलिए हे गौतम ! ऐसा कहा गया है कि केवली यावत् केवलि-पाक्षिक की , उपासिका से धर्मप्रतिपादक वचन सुनकर यावत् कोई जीव केवलज्ञान केवलदर्शन प्राप्त करता है और 卐 कोई प्राप्त नहीं करता।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है; ऐसा कहकर गौतम स्वामी यावत् । 卐 विचरण करते हैं।
(Concluding statement) That is why, Gautam ! I say that by hearing (the sermon) from the omniscient ... and so on up to... or his (selfenlightened omniscient's) female devotee (upaasika) some jiva (living being) may and some other may not acquire Keval-jnana (omniscience).
"Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words... and so on up to... ascetic Gautam resumed his activities.
विवेचन : असोच्चा से सोच्चा अवधिज्ञानी की कुछ बातों में अन्तर-(१) लेश्या-असोच्चा अवधिज्ञानी में तीन ही विशुद्ध लेश्याएं बताई गई हैं, जबकि सोच्चा अवधिज्ञानी में छह लेश्याएं बताई गई हैं। उसका रहस्य यह है
कि यद्यपि तीन प्रशस्त भावलेश्या होने पर ही अवधिज्ञान प्राप्त होता है, तथापि द्रव्यलेश्या की अपेक्षा से व 卐 सम्यक्त्व श्रुत की तरह छह लेश्याओं में होता है। (२) ज्ञान-तेले-तेले की विकट तपस्या करने वाले साधु को 卐
अवधिज्ञान उत्पन्न होता है और अवधिज्ञानी में प्रारम्भिक दो ज्ञान (मति-श्रुतज्ञान) अवश्य होने से उसे तीन ज्ञानों में बतलाया गया है। जो मनःपर्यायज्ञानी होता है. उसके अवधिज्ञान उत्पन्न होने पर अवधिज्ञानी चार ज्ञानों से युक्त हो जाता है। (३) वेद-यदि अक्षीणवेदी को अवधिज्ञान की उत्पत्ति हो तो वह सवेदक होता है, उस
समय या तो वह स्त्रीवेदी होता है या पुरुषवेदी अथवा पुरुषनपुंसकवेदी होता है और अवेदी को अवधिज्ञान म होता है तो वह क्षीणवेदी को होता है, उपशान्तवेदी को नहीं होता, क्योंकि आगे इसी अवधिज्ञानी के केवलज्ञान :
की उत्पत्ति का कथन विवक्षित है। (४) कषाय-कषायक्षय न होने की स्थिति में अवधिज्ञान प्राप्त होता है तो वह जीव सकषायी होता है और कषायक्षय होने पर अवधिज्ञान होता है तो अकषायी होता है। यदि अक्षीणकषायी
अवधिज्ञान प्राप्त करता है तो चारित्रयुक्त होने से चार संज्वलन कषायों में होता है, जब क्षपक श्रेणिवर्ती होने से । के संज्वलन क्रोध क्षीण हो जाता है, तब अवधिज्ञान प्राप्त होता है, तो संज्वलनमानादि तीन कषाययुक्त होता है, 5
जब क्षपक श्रेणि की दशा में संज्वलन क्रोध मान क्षीण हो जाता है तो संज्वलन माया लोभ से युक्त होता है और जब तीनों क्षीण हो जाते हैं तो वह अवधिज्ञानी एक मात्र संज्वलन लोभ से युक्त होता है। (वृत्ति, पत्र ४३८)
Elaboration-Some differences between Asochcha and Sochcha Avadhi-jnani-(1) Leshya (soul complexion)-In case of Asochcha Avadhi inani only three Leshyas have been mentioned whereas in case of
नवम शतक : इकत्तीसवाँ उद्देशक
(351)
Ninth Shatak: Thirty First Lesson |
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