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मनागमनागावागागागागागा
4i Elaboration—Seven alternatives of entrance of one infernal \ being- When one jiva enters the infernal realm there are seven
alternatives-(1) it enters the first hell (Ratnaprabha Prithvi), (2) it enters the second hell (Sharkaraprabha Prithvi), ... and so on up to...(7) it enters the seventh hell (Adhah-saptam Prithvi). दो नैरयिकों के प्रवेशनक भंग OPTIONS FOR TWO INFERNAL BEING
१७. [प्र.] दो भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणए णं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा जाव + अहेसत्तमाए होज्जा ?
[उ. ] गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा।
अहवा एगे रयणप्पभाए होजा, एगे सक्करप्पभाए होज्जा १। अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए होज्जा २। जाव एगे रयणप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा, ३-४-५-६। अहवा एगे
सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए होज्जा ७। जाव अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा # ८-९-१०-११। अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए होज्जा १२। एवं जाव अहवा एगे
वालुयप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा, १३-१४-१५। एवं एक्केक्का पुढवी छड्डेयव्वा जाव अहवा एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा, १६-१७-१८-१९-२०-२१।
१७. [प्र. ] भगवन् ! दो नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या । रत्नप्रभा-पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तम-पृथ्वी में?
[उ. ] गांगेय ! वे दोनों (१) रत्नाप्रभा-पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं, अथवा (२ से ७) यावत् अधः । सप्तम-पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। है अथवा (१) एक रत्नप्रभा-पृथ्वी में उत्पन्न होता है और एक शर्कराप्रभा-पृथ्वी में। अथवा (२) एक । रत्नप्रभा-पृथ्वी में और एक बालुकाप्रभा-पृथ्वी में (३-४-५-६)। अथवा यावत् एक रत्नप्रभा-पृथ्वी
में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में। (अर्थात् एक रत्नप्रभा-पृथ्वी में और एक पंकप्रभा-पृथ्वी में, एक रत्नप्रभा-पृथ्वी में और एक धूमप्रभा-पृथ्वी में, एक रत्नप्रभा-पृथ्वी में और एक तमःप्रभा-पृथ्वी में, या एक रत्नप्रभा पृथ्वी में और एक तमस्तमःप्रभा-पृथ्वी में उत्पन्न होता है। इस प्रकार रत्नप्रभा के साथ ॥ छह विकल्प होते हैं।) अथवा (७) एक शर्कराप्रभा-पृथ्वी में उत्पन्न होता है और एक बालुकाप्रभा पृथ्वी की में, अथवा (८-९-१०-११) यावत् एक शर्कराप्रभा-पृथ्वी में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में। इस फ़ प्रकार शर्कराप्रभा के साथ पाँच विकल्प हुए। (१२) अथवा एक बालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में उत्पन्न होता है; (१३-१४-१५) अथवा इसी प्रकार यावत् एक बालुकाप्रभा में और एक अधः सप्तम-पृथ्वी में उत्पन्न होता है। इस प्रकार बालुकाप्रभा के साथ चार विकल्प हुए। (१६-१७-१८-१९-२०-२१) इसी प्रकार (पूर्व-पूर्व की) एक-एक पृथ्वी छोड़ देनी चाहिए; यावत् एक तमःप्रभा में और एक तमस्तमःप्रभा में उत्पन्न होता है।
|नवम शतक : बत्तीसवाँ उद्देशक
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Ninth Shatak : Thirty Second Lesson
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