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संज्वलन मान, माया और लोभ होते हैं। यदि दो कषाय होते हैं तो संज्वलन माया और लोभ होते हैं और यदि एक कषाय होता है तो संज्वलन लोभ होता है।
[Q. 3] Bhante ! If he is with passions (sakashayi ), then how many passions he has ? [Ans.] Gautam He has four or three or two or just one of the passions. If four, they are—evanescent (sanjvalan) anger, conceit, deceit and greed. If three, they are evanescent (sanjvalan) conceit, deceit and greed. If two, they are evanescent (sanjvalan) deceit and greed. If one, it is-evanescent (sanjvalan) greed.
३९. [ प्र. ] तस्स णं भंते ! केवतिया अज्झवसाणा पण्णत्ता ?
[ उ. ] गोयमा ! असंखेज्जा, एवं जहा असोच्चाए (सु. २५ - २६ ) तहेव जाव केवलवरनाण - दंसणे समुपज्जइ (सु. २६) ।
३९. [ प्र. ] भंते ! उस (तथारूप) अवधिज्ञानी के कितने अध्यवसाय बताए गए हैं ?
[ उ. गौतम ! उसके असंख्यात अध्यवसाय होते हैं। जिस प्रकार (सू. २५, २६ में) असोच्चा केवली के अध्यवसाय के विषय में कहा गया, उसी प्रकार यहाँ भी 'सोच्चा केवली' के लिए यावत् उसे केवलज्ञान- केवलदर्शन उत्पन्न होता है, यहाँ तक कहना चाहिए।
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39. [Q.] Bhante ! How many kinds of mental activity (adhyavasaaya) he has ?
[Ans.] Gautam ! He has innumerable kinds of mental activity (adhyavasaaya). What has been said about mental activity of Asochcha Kevali should also be repeated here about Sochcha Kevali (omniscient by hearing the sermon)... and so on up to... he gets endowed with 'ultimate knowledge' or Keval - jnana and 'ultimate perception' or Keval-darshan. सोच्चा केवली द्वारा उपदेश, प्रव्रज्या आदि PREACHING, INTITIATION ETC. BY SOCHCHA KEVALI ४०. [ प्र. ] से णं भंते ! केवलिपण्णत्तं धम्मं आघवेज्जा वा, पण्णावेजा वा, परूवेज्जा वा ? [उ. ] हंता, आघविज्ज वा, पण्णवेज्ज वा, परूवेज्ज वा ।
४०. [ प्र. ] भंते ! वह 'सोच्चाकेवली' केवलि - प्ररूपित धर्म कहते हैं, बतलाते हैं या प्ररूपित करते हैं ? [ उ. ] हाँ, गौतम ! वे केवलि - प्ररूपित धर्म कहते हैं, बतलाते हैं और उसकी प्ररूपणा भी कहते हैं । फ 40. [Q.] Bhante ! Does he (Sochcha Kevali or omniscient by hearing the sermon) say, elaborate and propagate the religion propagated by the omniscient ?
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[Ans.] Yes, Gautam ! He does say, elaborate and propagate the religion propagated by the omniscient.
भगवती सूत्र (३)
(348)
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Bhagavati Sutra (3)
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