________________
;55555555555555555555555555555555555555555558
5 ३. [प्र. ] भगवन् ! असंख्यात जीव वाले वृक्ष कौन-से हैं ? ॐ [उ. ] गौतम ! असंख्यात जीव वाले वृक्ष दो प्रकार के हैं। यथा-एकास्थिक (एक गुठलीवाले) और + बहुबीजक (बहुत बीजों वाले।) 4 3. [Q.) Bhante ! Which are the trees having uncountable number of ki jivas (souls)?
[Ans.] Gautam ! Trees having an uncountable number of jivas (souls) are of two types—those with single seed and those with multiple seeds.
४. [प्र. ] से किं तं एगट्ठिया ? 3 [उ. ] एगट्ठिया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-निबंबजंबु एवं जहा पण्णवणापए जाव फला बहुबीयगा। से तं बहुबीयगा। से तं असंखेज्जजीविया।
४. [प्र. ] भगवन् एकास्थिक वृक्ष कौन-से हैं ?
[उ. ] गौतम ! एकास्थिक (एक गुठली या बीज वाले) वृक्ष अनेक प्रकार के हैं। जैसे कि-नीम, के आम, जामुन आदि। इस प्रकार प्रज्ञापनासूत्र (प्रथम पद) में कहे अनुसार यावत् बहुबीज वाले फलों तक के + कहना चाहिए। इस प्रकार यह बहुबीजकों का वर्णन हुआ। यह असंख्यात जीव वाले वृक्षों का वर्णन हुआ।
4. [Q.] Bhante ! Which are the trees having single seed ?
JAns.) Gautam ! Trees having single seed are of many types—Neem (Margosa; Melia azadirachta), Aam (mango), Jamun (rose-apple; Eugenia Jambolana) etc. ... and so on up to ... trees with multiple seeds, as mentioned in the first chapter of Prajnapana Sutra. This concludes $1 description of trees with multiple seeds. This concludes description of trees with uncountable souls.
५. [प्र. ] से किं तं अणंतजीविया ? [उ. ] अणंतजीविया अणेगविहा पण्णत्ता, तं जहा-आलुए, मूलए, सिंगबेरे एवं जहा सत्तमसए जाव सीउंढी, मुसुंढी, जे यावन्ने तहप्पगारा। से त्तं अणंतजीविया।
५. [प्र. ] भगवन् ! अनन्त जीव वाले वृक्ष कौन-से हैं ?
[उ. ] गौतम ! अनन्त जीव वाले वृक्ष अनेक प्रकार के हैं। जैसे-आलू, मूला, शृंगबेर (अदरख) ॐ आदि। इस प्रकार भगवतीसूत्र के सप्तम शतक के तृतीय उद्देशक में कहे अनुसार, यावत् 'सिउंढी (सोंठ) के
मुसुंढी तक जानना चाहिए। ये और इनके अतिरिक्त जितने भी इस प्रकार के अन्य वृक्ष है, उन्हें भी (अनन्त जीव वाले) जान लेना चाहिए। यह अनन्त जीव वाले वृक्षों का कथन हुआ।
5. [Q.] Bhante ! Which are the trees having infinite number of jivas (souls)?
प्र
भगवती सूत्र (३)
(94)
Bhagavati Sutra (3)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org