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35555555555555555555555555555555555558 41 Padilaabhemanassa' means the fruits or benefits gained through 15 $ charity based on the teachers advise or that given with the intent of 4
gaining liberation. It is not traditionally used for the acts of charity to
the destitute, tormented, miserable, ailing and pitiable or to relatives 15 and any other social charity. For such acts the term in use is 'dalayai' or $ dalejja'. This indicates that here the discussion is not about the charity
out of compassion or to the deserving, but specifically about the charity pointedly given to gain meritorious karmas.
Prasuk means non-living or not infested with living organism and aprasuk means living or infested with living organism. Eshaniya means free of various prescribed faults related to alms-collection by an ascetic and aneshaniya means with those faults.
Much shedding and little acquisition by giving faulty food here describes some emergency when an ascetic is forced to accept such faulty food and the donor too has to give in order to save his life. And he gives it with the feeling of atonement for the act. Then in such situation he sheds much karmas and acquires little. (Vritti, leaf 373) पिण्ड-पात्र आदि की उपभोग-मर्यादा LIMITATIONS OF USE
४. [१] निग्गंथं च णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुप्पविद्वं केइ दोहिं पिंडेहिं उवनिमंतेज्जाएगं आउसो ! अप्पणा भुंजाहि, एगं थेराणं दलयाहि, से य तं पिंडं पडिग्गाहेज्जा, थेरा य से 5 ॐ अणुगवेसियव्या सिया, जत्थेव अणुगवेसमाणे थेरे पासिज्जा तत्थेवाऽणुप्पदायब्वे सिया, नो चेव णं
अणुगवेसमाणे थेरे पासिज्जा तं नो अप्पणा भुंजेज्जा, नो अन्नेसिं दावए, एगंते अणावाए अचित्ते बहुफासुए : ॐ थंडिले पडिलेहेत्ता, पमज्जित्ता परिट्ठावेतव्ये सिया।
४. [१] गृहस्थ के घर में आहार ग्रहण करने की बुद्धि से प्रविष्ट निर्ग्रन्थ को कोई गृहस्थ दो पिण्ड (खाद्य पदार्थ) ग्रहण करने के लिए उपनिमंत्रण करे-‘आयुष्मन् श्रमण ! इन दो पिण्डों (दो लड्डू, दो . 5 रोटी या दो अन्य खाद्य पदार्थों) में से एक पिण्ड आप स्वयं खाना और दूसरा पिण्ड स्थविर मुनियों को ,
देना।' (इस पर) वह निर्ग्रन्थ श्रमण उन दोनों पिण्डों को ग्रहण कर ले और (स्थान पर आकर) स्थविरों ऊ की गवेषणा करे। गवेषणा करने पर उन स्थविर मुनियों को जहाँ देखे, वहीं वह पिण्ड उन्हें दे दे। यदि
गवेषणा करने पर भी स्थविर मुनि कहीं न दिखाई दें (मिलें) तो वह पिण्ड स्वयं न खाए और न ही ॥ दूसरे किसी श्रमण को दे, किन्तु एकान्त, अनापात (जहाँ आवागमन न हो), अचित्त या बहुप्रासुक स्थण्डिल भूमि का प्रतिलेखन एवं प्रमार्जन करके वहाँ उस पिण्ड को परठ दे। (परिष्ठापन विधि के सम्बन्ध में उत्तराध्ययनंसत्र, अ. २४, गा.१ से ३ तक में विस्तारपूर्ण कथन है।)
4. [1] Suppose an ascetic comes to a householder to seek alms and the i householder offers him two units of some food (two loaves of bread, two
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| भगवती सूत्र (३)
(120)
Bhagavati Sutra (3) |
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