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म धमक)
)) ))) ))))))) )558 same as has been stated about a being that has acquired bondage of six species of karmas.
विवेचन : परीषह : स्वरूप और प्रकार-आपत्ति आने पर भी संयममार्ग से भ्रष्ट न होने, तथा उसमें स्थिर रहने के लिए एवं कर्मों की निर्जरा के लिए जो शारीरिक, मानसिक कष्ट साधु, साध्वियों को सहन करने
चाहिए, वे ‘परीषह' कहलाते हैं। ऐसे परीषह २२ हैं। यथा-(१) क्षुधा-परीषह-संयममर्यादानुसार एषणीय, + कल्पनीय निर्दोष आहार न मिलने पर क्षुधा का कष्ट सहना। (२) पिपासा-परीषह-प्यास का परीषह, (३) * शीत-परीषह-ठण्ड का परीषह, (४) उष्ण-परीषह-गर्मी का परीषह, (५) दंश-मशक-परीषह-डांस, मच्छर,
खटमल, जूं, चींटी आदि का परीषह, (६) अचेल-परीषह-वस्त्राभाव, वस्त्र की अल्पता या जीर्णशीर्ण, मलिन आदि अपर्याप्त वस्त्रों के कारण होने वाला परीषह, (७) अरति-परीषह-संयममार्ग में कठिनाइयाँ, असुविधाएँ एवं कष्ट आने पर अरति-अरुचि या उदासी या उद्विग्नता से होने वाला कष्ट, (८) स्त्री-परीषह-स्त्रियों से होने
वाला कष्ट, साध्वियों के लिए पुरुषों से होने वाला कष्ट, (यह अनुकूल परीषह है।) (९) चर्या-परीषह-ग्राम, ॐ नगर आदि के विहार से या पैदल चलने से होने वाला कष्ट, (१०) निषद्या या निशीथिका-परीषह-स्वाध्याय ॥
आदि करने की भूमि में तथा सूने घर आदि में ठहरने से होने वाले उपद्रव का कष्ट, (११) शय्या-परीषह-रहने के (आवास-) स्थान की कूलता से होने वाला कष्ट, (१२) आक्रोश-परीषह-कठोर, कर्कश वचनों से होने
वाला, (१३) वध-परीषह-मारने-पीटने आदि से होने वाला कष्ट, (१४) याचना-परीषह-भिक्षा माँगकर लाने क में होने वाला मानसिक कष्ट, (१५) अलाभपरीषह-भिक्षा आदि न मिलने पर होने वाला कष्ट, (१६)
रोग-परीषह-रोग के कारण होने वाला कष्ट, (१७) तृणस्पर्श-परीषह-घास के बिछौने पर सोने से शरीर में ॐ चुभने से या मार्ग में चलते समय तृणादि पैर में चुभने से होने वाला कष्ट, (१८) जल्ल-परीषह-कपड़ों या तन ॥ म पर मैल, पसीना आदि जम जाने से होने वाली ग्लानि, (१९) सत्कार-पुरस्कार-परीषह-जनता द्वारा सम्मान- 5
सत्कार, प्रतिष्ठा, यश, प्रसिद्धि आदि न मिलने से होने वाला मानसिक खेद अथवा सत्कार-सम्मान मिलने पर गर्व अनुभव करना, (२०) प्रज्ञा-परीषह-प्रखर अथवा विशिष्ट बुद्धि का गर्व करना, (२१) ज्ञान या अज्ञान-परीषह-विशिष्ट ज्ञान होने पर उसका अहंकार करना, ज्ञान (बुद्धि) की मन्दता होने से मन में दैन्यभाव आना, और (२२) अदर्शन या दर्शन-परीषह-दूसरे मत वालों की ऋद्धि-वृद्धि एवं चमत्कार-आडम्बर आदि देखकर सर्वज्ञोक्त सिद्धान्त से विचलित होना या सर्वज्ञोक्त तत्त्वों के प्रति शंकाग्रस्त होना।
34. [Q.) Bhante ! How many afflictions an Ayogi Bhavasth Kevali (living omniscient without association) who does not acquire bondage of harmas (abandhak) suffers?
[Ans.] Gautam ! He is said to suffer eleven afflictions. However, at a time he suffers only nine afflictions. This is because when a being suffers affliction of cold he does not suffer that of heat and vice versa; also when he suffers the movement related affliction he does not suffer accommodation related affliction and vice versa. ___Elaboration-Afflictions : definition and types-The physical and mental torments ascetics should endure in order to remain unwavering and steadfast in observation of ascetic discipline as well as to achieve
भगवती सूत्र (३)
(186)
Bhagavati Sutra (3)
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