Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 330
________________ ॐ अन्तर्मुहूर्त है। (३) उनसे वैक्रियशरीर के सर्वबन्धक असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि आहारकशरीरधारी जीवों से ॐ वैक्रियशरीरी असंख्यातगुणे अधिक हैं। (४) उनसे वैक्रियशरीरधारी देशबन्धक जीव असंख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि सर्वबन्ध से देशबन्ध का काल अंख्यातगुणा है। अथवा प्रतिपद्यमान सर्वबन्धक होते हैं, और पूर्वप्रतिपन्न देशबन्धक; अतः प्रतिपद्यमान की अपेक्षा पूर्वप्रतिपन्न असंख्यातगुणे हैं। (५) उनसे तैजस और कार्मणशरीर के 卐 अबन्धक अनन्तगुणे हैं, क्योंकि इन दोनों शरीरों के अबन्धक सिद्ध भगवान हैं, जो वनस्पतिकायिक जीवों के के सिवाय शेष सर्व संसारी जीवों से अनन्तगुणे हैं। (६) उनसे औदारिकशरीर के सर्वबन्धक जीव अनन्तगुणे हैं, क्योंकि वनस्पतिकायिक जीव भी औदारिकशरीरधारियों में हैं। (७) उनसे औदारिकशरीर के अबन्धक जीव है इसलिए विशेषाधिक हैं. कि विग्रहगतिसमापपन्नक जीव तथा सिद्ध जीव सर्वबन्धकों से बहुत हैं। (८) उनसे 卐 औदारिकशरीर के देशबन्धक असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि विग्रहगति के काल की अपेक्षा देशबन्धक का काल असंख्यातगुणा है। (९) उनसे तैजस्-कार्मणशरीर के देशबन्धक विशेषाधिक हैं, क्योंकि सारे संसारी जीव तैजस् और कार्मणशरीर के देशबन्धक होते हैं। इनमें विग्रहगति समापपन्नक, औदारिक सर्वबन्धक और वैक्रियादि-बन्धक जीव भी आ जाते हैं। अतः औदारिक देशबन्धकों से ये विशेषाधिक बताये गये हैं। (१०) उनसे वैक्रियशरीर के अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि वैक्रियशरीर के बन्धक प्रायः देव और नारक हैं। शेष सभी संसारी जीव और सिद्ध भगवान वैक्रिय के अबन्धक ही हैं, इस अपेक्षा से वे तैजसादि देशबन्धकों से विशेषाधिक बताये गये है। (११) उनसे आहारकशरीर के अबन्धक विशेषाधिक हैं, क्योंकि वैक्रिय तो देव-- ॐ नारकों के भी होता है, किन्तु आहारकशरीर सिर्फ चतुर्दश पूर्वधर मुनियों के होता है। इस अपेक्षा से के आहारकशरीर के अबन्धक विशेषाधिक कहे गये हैं। -(वृत्ति, पत्रांक ४१४) ॥ अष्टम शतक : नवम उद्देशक समाप्त ॥ Elaboration-Reasons for comparative numbers-(1) Only accomplished ascetics having knowledge of fourteen Purvas (subtle canon) create telemigratory body (aharak sharira) and that too for some special purpose. Moreover, this bondage of the whole lasts only for one Samaya. Thus the number of those with bondage of the whole (sarva bandhak) of telemigratory body is minimum. (2) Countable times more than these are those with bondage of a part (desh-bandhak) of 4 telemigratory body because this bondage lasts for one Antarmuhurt. (3) $i Countable times more than these are those with bondage of the whole (sarva bandhak) of transmutable body (vaikriya sharira) because the total number of living beings with transmutable body is countable times more than those with telemigratory body. (4) Innumerable times more than these are those with bondage of a part (desh-bandhak) of i transmutable body (vaikriya sharira) because the bondage of a part lasts for a period innumerable times more than the lasting period of the bondage of the whole; also, bondage of the whole is acquired by those who commence bonding, whereas bondage of a part is acquired by those i who have passed the point of this commencement and the number of 4 | भगवती सूत्र (३) (270) Bhagavati Sutra (3) B )) ) ) )) )) ) )))) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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