________________
குதிதத்ததிதிமிதிதித****தமிழழதமி****தமி*****S
फ्र
६१. [ प्र. १ ] सिद्धे णं भंते! किं पोग्गली, पोग्गले ?
[ उ. ] गोयमा ! नो पोग्गली, पोग्गले ।
६१. [ प्र. १ ] भगवन् ! सिद्धजीव पुद्गली हैं या पुद्गल हैं ?
[उ. ] गौतम ! सिद्धजीव पुद्गली नहीं, किन्तु पुंगल हैं ।
61. [Q. 1] Bhante ! Is Siddha jiva ( liberated soul) possessor of matter (pudgali) or matter (pudgal ) ?
[Ans.] Gautam ! Siddha jiva (liberated soul) is not possessor of matter (pudgali) but matter (pudgal) itself.
[प्र. २ ] से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ जाव पोग्गले ?
[उ. ] गोयमा ! जीवं पडुच्च, से तेणट्टेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ 'सिद्धे नो पोग्गली, पोग्गले' ।
सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० ।
॥ अट्ठमसए : दसमो उद्देसओ समत्तो ॥
॥ अट्टमं सयं समत्तं ॥
[प्र. २ ] भगवन् ! आप ऐसा किस कारण से कहते हैं, कि सिद्धजीव पुद्गली नहीं, किन्तु पुद्गल हैं ?
[ उ. ] गौतम ! जीव की अपेक्षा सिद्धजीव पुद्गल हैं; (किन्तु उनके इन्द्रियाँ न होने से वे पुद्गली नहीं हैं); इस कारण से कहता हूँ कि सिद्धजीव पुद्गली नहीं, किन्तु पुद्गल हैं ।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कहकर श्री गौतम स्वामी यावत् विचरण करते हैं ।
61. [Q. 2] Bhante ! Why do you say that Siddha jiva (liberated soul) is not possessor of matter (pudgali) but matter (pudgal) itself ?
[Ans.] Gautam ! In context of its existence as a soul it is pudgal (matter), (but as it does not have sense organs it is not pudgali), that is why I say that Siddha jiva (liberated soul) is not possessor of matter (pudgali) but matter (pudgal) itself.
"Bhante! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words... and so on up to... ascetic Gautam resumed his activities.
विवेचन : पुद्गली एवं पुद्गल की व्याख्या - प्रस्तुत प्रकरण में 'पुद्गली' उसे कहते हैं, जिसके श्रोत्रेन्द्रिय, चक्षुरिन्द्रिय आदि पुद्गल हों । इन्द्रियों रूपी पुद्गलों के संयोग से औधिक जीव तथा चौबीस दण्डकवर्ती जीवों को 'पुद्गली' कहा गया है। सिद्धजीवों के इन्द्रियरूपी पुद्गल नहीं होते, इसलिए वे 'पुद्गली' नहीं कहलाते । जीव को भगवती सूत्र ( ३ )
Bhagavati Sutra (3)
***
Jain Education International
(304)
For Private & Personal Use Only
फ्र
卐
फ्र
फ्र
फ्र
卐
卐
卐
卐
फ्र
5
www.jainelibrary.org