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$ $$$$$ $$$ $$ $$E ithan nine hundred forty-nine Yojans. This island is surrounded by a y i plateau (Padmavarvedika) and a forest. The dimensions and description Stof these two should be read from the first lesson of the EJivabhigam Sutra. In this sequence ... and so on up to... the description
of Shuddhadant Dveep should be quoted ... and so on up to... "O long 4 lived Shraman ! It is said that the human beings of these islands are
destined to reincarnate in the divine realm." म ३. एवं अट्ठावीसं पि अंतरदीवा सएणं सएणं आयाम-विक्खंभेणं भाणियव्वा, नवरं दीवे दीवे
उद्देसओ। एवं सव्वे वि अट्ठावीसं उद्देसगा। + सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०।
॥ नवम सए : तइयाइआ तीसंता उद्देसा समत्ता ॥ ३. इस प्रकार अपनी-अपनी लम्बाई-चौड़ाई के अनुसार इन अट्ठाईस अन्तर्वीपों का वर्णन कहना 卐चाहिए। विशेष यह है कि यहाँ एक-एक द्वीप के नाम से एक-एक उद्देशक कहना चाहिए। इस प्रकार
ये सब मिलकर इन अट्ठाईस अन्तर्वीपों के अट्ठाईस उद्देशक होते हैं। म हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कहकर भगवान गौतम यावत् विचरण करते हैं।
3. This way the description of these twenty-eight middle islands (Antardveep) should be mentioned according to their respective dimensions. It should be noted that one independent lesson (Uddeshak)
is to be devoted to each island. Thus there are twenty-eight lessons for Si these twenty-eight islands.
"Bhante ! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words... ॐand so on up to... ascetic Gautam resumed his activities.
विवेचन : अन्तर्दीप और वहाँ के निवासी मनुष्य-ये द्वीप लवणसमुद्र के अन्दर होने से ‘अन्तर्वीप' कहलाते हैं। इनके रहने वाले मनुष्य अन्तर्बीपक कहलाते हैं। यों तो उत्तरवर्ती और दक्षिणवर्ती समस्त अन्तर्वीप छप्पन होते 卐हैं, परन्तु यहाँ पर दक्षिण दिशावर्ती अन्तीपों के सम्बन्ध में ही प्रश्न हैं और वे २८ हैं। प्रज्ञापनासत्र के अनुसार + उनके नाम इस प्रकार हैं-(१) एकोरुक, (२) आभासिक, (३) लांगूलिक, (४) वैषाणिक, (५) हयकर्ण, (६)
गजकर्ण, (७) गोकर्ण, (८) शष्कुलीकर्ण, (९) आदर्शमुख, (१०) मेण्द्रमुख, (११) अयोमुख, (१२) गोमुख, (१३) अश्वमुख, (१४) हस्तिमुख, (१५) सिंहमुख, (१६) व्याघ्रमुख, (१७) अश्वकर्ण, (१८) सिंहकर्ण, (१९) अकर्ण, (२०) कर्णप्रावरण, (२१) उल्कामुख, (२२) मेघमुख, (२३) विद्युन्मुख, (२४) विद्युदन्त, (२५) घनदन्त, (२६) लष्टदन्त, (२७) गूढदन्त, और (२८) शुद्धदन्त द्वीप। इन्हीं अन्तर्वीपों के नाम पर इनके रहने
मनुष्य भी इसी नाम वाले कहलाते हैं तथा एकोरुक आदि २८ अन्तर्वीपों में से प्रत्येक अन्तर्वीप के नाम से म एक-एक उद्देशक है। यहाँ रहने वाले मनुष्य युगलिया होते हैं।
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| भगवती सूत्र (३)
(312)
Bhagavati Sutra (3)
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